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सूत्र संवेदना-५
आज आपकी इस भव्यता को याद करता हूँ और बाह्य भव्यता के माध्यम से आपकी आंतरिक भव्यता को प्राप्त करने का यत्न करता हूँ ।” ऊर्ध्वलोक और अधोलोक के शाश्वत चैत्य तथा जिनबिंबों को वंदन करने के बाद अब तिमॆलोक के चैत्यों की वंदना करते हुए बताते हैं कि३. ति लोक के शाश्वत चैत्यों की वंदना : (गाथा-९) बत्रीसे ने ओगणसाठ, ति लोकमां चैत्य नो पाठ, त्रण लाख एकाणुं हजार , त्रणशे वीश ते बिंब जुहार ।।९।। शब्दार्थ :
शास्त्र में कहा गया है कि ति लोक में तीन हज़ार दो सौ उनसठ (३२५९) शाश्वत चैत्य हैं, जिनमें तीन लाख, इकानबें हज़ार, तीन सौ बीस (३,९१,३२०) जिनप्रतिमाएँ हैं, मैं उनको वंदन करता हूँ। विशेषार्थ : __ शास्त्रों में बताया गया है कि १४ राजलोक प्रमाण लोक के मध्यभाग
को ति लोक कहते हैं। गोलाकार में रहे ति लोक का विष्कंभ (diameter) एक राजलोक प्रमाण है। इसके मध्य में जंबुद्वीप नाम का द्वीप है, जिसके मध्य में मेरू पर्वत है। इस जंबूद्वीप के चारों ओर चूड़ी के आकार का लवण समुद्र है। उसके बाद क्रमशः पूर्व के द्वीप और समुद्र से दुगुने-दुगुने विस्तारवाले असंख्यात द्वीप-समुद्र इस ति लोक में हैं। उसमें सबसे अंत में स्वयंभूरमण समुद्र है। प्रथम जंबूद्वीप है, 3. ति लोक के मध्य में रहा हुआ जंबूद्वीप १ लाख योजन के विष्कंभ (diameter)
७,९०,५६,९४,१५० योजन, १ गाउ, १५१५ धनुष, २ 1, हाथ क्षेत्र फल (area) वाला और ३,१६,२२७ योजन ३ गाउ १२८ धनुष, १३ अंगुल, ५ यव और १ यूका परिधिवाला (circumference) द्वीप है।