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सकलतीर्थ वंदना
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यह पद बोलते हुए अतिप्राचीन और प्रभावशाली इस प्रतिमा का स्मरण करके उसे प्रणाम करते हुए साधक को सोचना चाहिए कि,
“प्रभु ! आप तो वीतरागी हैं, आपको कोई विधि से पूजे या अविधि से पूजें, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, परन्तु इस तीर्थ में मिथ्यात्वियों के हाथ से आपकी जो अविधि से पूजा हो रही है उससे मेरा मन पीड़ित है। प्रभु ! ऐसा सत्त्व देना कि इस अविधि से होनेवाली पूजा को रोककर, विधिपूर्वक पूजा का प्रारंभ करवाकर मैं स्व-पर सब के श्रेय में निमित्त बनूँ !”
तारंगे श्री अजित
'जुहार -
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“ आबू की कोरणी (नक्काशी) तो तारंगा की ऊँचाई ।" ८४ गज ऊँचे इस तीर्थ के दर्शन करनेवाले आश्चर्यचकित हो जाते हैं। परमार्हत् कुमारपाल महाराज ने पूर्व में ३२ मंज़िल का यह मन्दिर बंधवाकर उसमें १२५ अंगुल ऊँची श्री ऋषभदेव परमात्मा की प्रवाल की प्रतिमा स्थापित की थी। समय के प्रवाह से यह तीर्थ टूट गया। उपद्रव होने पर कुमारपाल राजा द्वारा स्थापित प्रवाल के जिनबिंबों को खजाने में रखा गया। आज इस तीर्थ में चार मंजिल का चैत्य है । उसमें श्री अजितनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा है। उसके ऊपर केग की लकड़ी यानी जिसको जलाने से पानी निकलता हो वैसी लकड़ी को उसके चारों ओर इस प्रकार लगाया गया है कि ३२ मंजिल की गिनती की जा सकती है। यह मन्दिर १४२ फुट ऊँचा, १५० फुट लंबा और १०० फुट चौड़ा है और २३० फुट लंबे चौड़े चौक में स्थित है। इसके चारों ओर मनोहर प्राकृतिक वातावरण है।
यह पद बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए कि,