Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 324
________________ सकलतीर्थ वंदना ३११ जिसके कारण इतने क्षेत्र में दिन-रात, पक्ष, मास वर्ष आदि के व्यवहार होते हैं। २२/, द्वीप के बाहर जो असंख्यात ज्योतिषी विमान हैं, वे स्थिर होते हैं। इसी कारण वहाँ दिन-रात आदि का व्यवहार नहीं होता। देवलोक के अन्य विमानों की तरह प्रत्येक ज्योतिषी विमानों में भी एक शाश्वत जिनालय होता है। उनमें १२० जिन प्रतिमाएँ होती हैं। अतः ज्योतिषी में भी असंख्यात शाश्वती जिनप्रतिमाएँ हैं। इतना जानने से ख्याल आता है कि वैमानिक देवलोक में शाश्वत चैत्य सबसे कम हैं, (८४,९७,०२३) भवनपति में उससे संख्यात गुणा हैं (७,७२,००,०००), व्यंतर में उससे असंख्यात गुणा शाश्वत चैत्य हैं और ज्योतिषी में तो उससे भी संख्यात गुणा चैत्य हैं। हर एक उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी में भरत, ऐरवत तथा महाविदेह क्षेत्र में मिलाकर श्री ऋषभ, श्री चन्द्रानन, श्री वारिषेण और श्री वर्धमान; ये चार नामवाले तीर्थंकर अवश्य होते हैं और प्रत्येक शाश्वत जिनबिंब भी इन चार नामों से ही पहचाना जाता है। ये चारों गुणयुक्त सान्वर्थ नाम हैं। उनमें १. श्री ऋषभ अर्थात् श्रेष्ठ, श्रेष्ठ कोटि की आत्मिक संपत्तिवाले ऋषभ कहलाते हैं। २. श्री चन्द्रानन अर्थात् चन्द्र जैसी सौम्य एवं शीतल मुखाकृति को धारण करनेवाले। ३. श्री वारिषेण अर्थात् सम्यग् ज्ञानरूप वारि पानी का सिंचन करनेवाले।

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