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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२५९ उनको प्रणाम कर उनके जैसा भक्तिभाव हम मैं भी प्रगट हो ऐसी प्रार्थना करें !" २५ (७८) कुंती - माता कुंती पाण्डवों और कर्ण की तद्भव मोक्षगामी ऐसी इस माता की कथा प्रचलित है। इनको अपने जीवन में अनेक संघर्षों से गुज़रना पड़ा। उन सभी मुसीबतों के बीच प्रभुवचन के प्रति उनकी भक्ति अडिग थी। अपने संतानों में इस माता ने किन संस्कारों का सिंचन किया होगा कि कपटी, क्रूर, अन्यायी शत्रु जैसे भाईयों के सामने भी युद्ध करते हुए पाण्डवों ने कभी भी 'जैसे को तैसा' व्यवहार नहीं किया।
महासती कुंती पांडुराज के चित्र पर मोहित हो गई थी । उनकी सखियों ने उन दोनों का गांधर्व विवाह करवाया, जिससे कुंती को कर्ण नाम का दानवीर पुत्र हुआ; परन्तु कुंती के पिता, राजा अंधकवृष्णि को पांडुरोगवाले पाडुराज को अपनी पुत्री देने की इच्छा नहीं थी। इसलिए कुंती को पांडु राज से विवाह और उनसे हुए तेजस्वी पुत्र की बात भी छिपानी पड़ी। उन्होंने अपने पुत्र को एक पेटी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया।
महाभारत के युद्ध और घोर संग्राम के बीच कुंती माता ने अपने औचित्य का सतत पालन किया। वर्षों के बाद जब द्वारिका जल गई और कृष्ण की मृत्यु के समाचार मिले, तब वैराग्य प्राप्त कर पुत्रों के साथ माता कुंती ने भी दीक्षा ली। अंत में शजय पर अनशन कर आसो सुद १५ के दिन २० करोड़ मुनिवरों के साथ पाण्डव और माता कुंती मोक्ष गए।
“धन्य है संस्कार का सिंचन करनेवाली इस माता को, उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वंदन करते हैं।"