Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 311
________________ २९८ सूत्र संवेदना-५ तथा दीर्घ वैताढ्य पर्वत बताया गया है। वैताढ्य पर्वत के पूर्व दिशा के अंतिम कूट पर एक शाश्वत चैत्य है तथा दो नदियों के कुंडों में भी दो शाश्वत चैत्य हैं। इस तरह एक विजय के कुल ३ चैत्य हैं। ३. जंबूद्वीप के देवकुरू और उत्तरकुरू के क्षेत्र में : ___ ४५६ चैत्य ५४७२० प्रतिमाएँ (१५) महाविदेह के दक्षिण में निषध पर्वत है और उत्तर में नीलवंत पर्वत है। उसमें निषध पर्वत से मेरुपर्वत तक गजदंत पर्वत के मध्य में स्थित क्षेत्र देवकुरु कहलाता है। निषध पर्वत से सीतोदा नदी निकलती है। यह नदी पहले एक प्रपातकुंड में गीरती है और बाद में ५ द्रहों से होकर मेरु की और बहती है । इस पर्वत की तलहटी के दोनों तरफ ऊपर चित्र-विचित्र ऐसे दो पर्वत हैं। उन पर्वतों के शिखरों पर २ चैत्य हैं। पांच द्रहों के हर एक द्रह के दोनों तरफ १०-१० ऐसे कुल २० कंचनगिरि नाम के पर्वत हैं और हरेक के ऊपर एक-एक जिनालय है। इस प्रकार एक द्रह के २० कंचनगिरि पर्वत और ५ द्रह के मिलाकर कुल १०० कंचनगिरि पर्वत के ऊपर १०० चैत्य हैं। (१६) उत्तरकुरू क्षेत्र में जंबूनद नाम के सुवर्ण की एक जंबू पीठ है और उसके ऊपर विविध रत्नों से बना एक शाश्वत जंबूवृक्ष है। देवकुरु में उसके जैसा शाल्मलिवृक्ष है। उसमें मुख्य वृक्ष के ऊपर १ जिनालय है। उस वृक्ष के चारों तरफ १०८ वृक्ष हैं, हर एक के ऊपर एक-एक जिनालय है और उस मुख्य वृक्ष की चारों दिशा और विदिशा में स्थित आठ कूटों के ऊपर ८ जिनालय हैं। इस प्रकार सभी मिलाकर (१+१०८+८) = ११७ जिनालय हैं। __(१७) निषध पर्वत से शुरू करके हाथी के दाँत जैसे आकारवाले तथा मेरु की तरफ आगे बढ़ते हुए गजदंत आकार के दो पर्वत हैं : पूर्व में सोमनस और पश्चिम में विद्युत्प्रभ। इन दोनों पर्वतों पर २ चैत्य हैं। देवकुरु के मध्य में भी १ चैत्य है। अतः देवकुरु में कुल (१+२+५+१०० +११७+२+१) = २२८ चैत्य हैं। (१८) उत्तरकुरु में भी देवकुरु के जैसे ही २२८ चैत्य समझ लें । मात्र कोष्ठक के अनुसार नाम बदल दें ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346