Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 329
________________ ३१६ सूत्र संवेदना-५ से पवित्र हुए ये स्थान पापी अधम आत्माओं को भी पवित्र करने का कार्य करते हैं। इसी कारण इस गाथा के एक-एक शब्द द्वारा इन तीर्थों को प्रणाम करना चाहिए। . समेतशिखर वंदुं जिन वीश इस चौबीसी के बीस-बीस तीर्थंकर जहाँ से मोक्ष में गए हैं, वह समेतशिखर तीर्थ भारत देश के झारखंड (बिहार) राज्य में स्थित है। यहाँ बीस-बीस भगवान के समवसरण रचे गए थे। जगत् के जीवों के उद्धार के लिए बीस भगवान ने यहाँ अमोघ देशना का दान किया था। भगवान के पावनकारी वचनों से गूंजता और उनकी साधना के पुण्य पूंज से पवित्र बना हुआ यह तीर्थ है। इस तीर्थ का स्मरण होते ही उसके साथ जुड़े बीस तीर्थंकर परमात्मा तथा उनकी साधना भी स्मरण में आती है। इससे ही उसका स्मरण विशेष भाव का कारण बनता है। यह बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए कि, "मेरी ऐसी तो शक्ति नहीं है कि पूज्य पादलिप्त सूरि महाराज की तरह विद्याबल से आकाश मार्ग द्वारा उड़कर इस पवित्र तीर्थ का स्पर्श करके कर्मरज को दूर कर सकूँ, तो भी भाव से इस तीर्थ का स्मरण करके, जिन्होंने वहाँ सुविशुद्ध भाव प्राप्त किए थे, उन तीर्थंकरों को वंदन करूँ और अपनी अशुद्ध आत्मा को शुद्ध करने का प्रयत्न करूँ ।” अष्टापद वंदुं चोवीश : इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान अष्टापद से मोक्ष में पधारे थे। आठ सीढियों के कारण यह तीर्थ अष्टापद के नाम से पहचाना जाता है। इस तीर्थ के दर्शन चरमशरीरी जीव ही स्वलब्धि से कर सकते हैं। ऋषभदेव भगवान के निर्वाण के बाद भरतचक्रवर्ती ने यहाँ सिंहनिषद्या नाम का विहार बनाकर उसमें

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