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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२४७ षड्यंत्र रचकर ऋषिदत्ता मानव के रूप में मांसभक्षिणी राक्षसी है, ऐसा सिद्ध किया। कनकरथ के पिता ने ऋषिदत्ता को नगर के बाहर चिता में जलाने का आदेश दिया, परन्तु भाग्य के योग से वे बच गईं।
ऋषिदत्ता मर गई है ऐसा मानकर कनकरथ के पिता ने उसे पुनः रुक्मिणी के साथ शादी करने का आग्रह किया और फिर उसी जंगल में कनकरथ का एक ऋषिपुत्र के साथ मिलन हुआ। वास्तव में वह पुरुष वेश में ऋषिदत्ता ही थी। कनकरथ को उस ऋषिपुत्र के प्रति अति स्नेह प्रगट हुआ। इसलिए वह उसको साथ लेकर रुक्मिणी से शादी करने के लिए आगे चला।
शादी की प्रथम रात्रि को ही रुक्मिणी ने अपनी चतुराई बताने के लिए कनकरथ को पाने के लिए कैसा षड्यंत्र रचकर ऋषिदत्ता को कलंकित किया वगैरह बताया। कनकरथ तो यह सुनकर क्रोध से भड़क उठा। उसने अग्नि प्रवेश करने का निर्णय किया। साथ में आए ऋषिकुमार ने बहुत समझाया, परन्तु उसका दृढ़ निर्णय था कि ऋषिदत्ता के बिना वह नहीं जीऐगा। ऋषि ने कहा कि वह ऋषिदत्ता को लेकर आएगा । ऋषिदत्ता प्रगट हुई और उसने पति से प्रतिज्ञा करवाई कि 'आप मेरे साथ जैसा व्यवहार करते हैं, उससे कहीं अधिक अच्छा रुक्मिणी के साथ करेंगे।'
खुद पर कलंक लगानेवाले के प्रति ऐसी उदारता रखना सामान्य स्त्री के लिए संभव नहीं है। मामूली वस्तु के लिए भी हम उदारता नहीं रख सकते तो इस प्रकार पति के प्रेम संबंधी उदारता रखना तो बहुत बड़ी बात है। ऋषिदत्ता ने आजीवन रुक्मिणी के साथ सगी बहन जैसा व्यवहार करके गृहस्थ जीवन को सार्थक बनाया और अपने पूर्व भवों को जानकर वैराग्य प्राप्त करके, संयम जीवन का स्वीकार करके, कर्मक्षय किया और मोक्ष में गईं।