Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 288
________________ सकलतीर्थ वंदना २७५ क्रम १-६१। ६/ -८ पटना |११ अ. स्थावरतीर्थो की वंदना विषय गाथा नं. १ ऊर्ध्वलोक के चैत्यों की वंदना २ अधोलोक के चैत्यों की वंदना ३ तिर्यग्लोक के चैत्यों की वंदना ४ व्यंतर-ज्योतिषी देवों के विमान के चैत्यों की वंदना १० ५ दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थों की वंदना ___ आ. जंगमतीर्थों की वंदना विषय गाथा नं. १ विहरमान तीर्थंकरों की वंदना, अनंत सिद्धों की वंदना x x १३ | २ | अढ़ाई द्वीप के साधु महात्माओं की वंदना | १४-१५ मूल सूत्र : सकल तीर्थ वंदु कर जोड, जिनवर-नामे मंगल कोड, पहेले स्वर्गे लाख बत्रीश, जिनवर चैत्य नमु निशदिश ।।१।। बीजे लाख अट्ठावीश कह्या, त्रीजे बार लाख सद्दयां, चोथे स्वर्गे अडलख धार, पांचमें वंदुं लाख ज चार ।।२।। छठे स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालीस सहस प्रासाद, आठमे स्वर्गे छ हजार, नव दशमें वंदु शत चार ।।३।। अग्यार-बारमें त्रणशे सार, नव ग्रैवेयके त्रणशे अढार, पाँच अनुत्तर सर्वे मळी, लाख चोराशी अधिकां वळी ।।४।। सहस सत्ताणुं त्रेवीश सार, जिनवर भवनतणो अधिकार, लांबा सो जोजन विस्तार, पचास ऊँचां बहोंतेर धार ।।५।।

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