Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 330
________________ सकलतीर्थ वंदना ३१७ वर्तमान चौबीसी के हर एक तीर्थंकर की रत्नमय प्रतिमा, उनकी काया और वर्ण के अनुसार बिराजमान की। इसके उपरांत ९९ भाइयों, मरुदेवा माता तथा ब्राह्मी और सुंदरी वगैरह की प्रतिमाएँ भी यहाँ प्रतिष्ठित की गई हैं। विषमकाल में यह मंदिर और प्रतिमाएँ सुरक्षित रखने के लिए सगर चक्रवर्ती के ६०,००० (साठ हजार) पुत्रों ने इस पर्वत के अगल-बगल खाई खोदकर गंगा नदी के प्रवाह को बदलकर उसको पानी से भर दिया। इस काल में इस तीर्थ का द्रव्य से स्पर्श तो सम्भव नहीं, परन्तु भाव से उसकी वंदना करें तो कभी हमें भी गौतमस्वामीजी महाराज की तरह वहाँ की अद्भुत प्रतिमाओं के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो सकेगा। यह पद बोलते हुए इस तीर्थ तथा वहाँ बिराजित रत्नमयी प्रतिमाओं को ध्यान में लाकर वंदना करते हुए सोचना चाहिए कि, “यह कैसा अद्भुत कुटुंब है जो भौतिक क्षेत्र में तो साथ रहे ही परन्तु आत्मानंद की मस्ती प्राप्त करके सभी ने साथ ही सिद्धिगति भी प्राप्त की। मैं भी ऐसा पुरुषार्थ करके कब सिद्धिगति को प्राप्त करूँगा ?" विमलाचल: ___ निर्मल एवं अचल अवस्था की प्राप्ति का जो प्रबल कारण है, वैसा विमलाचलतीर्थ आज सौराष्ट्र के पालिताना गाँव में स्थित है। यह प्रायः शाश्वत है। इसके प्रत्येक-कंकड़ पर अनंत आत्माएँ क्षपकश्रेणी प्रारंभ कर, शुक्ल ध्यान के प्रथम दो पाये को साधकर, अयोगी गुणस्थान को स्पर्श कर, सभी कर्मों का क्षयकर, मात्र एक ही समय में सात राजलोक को पारकर लोक के अंत में सादि-अनंत प्रकार से शाश्वतस्वाधीन-संपूर्ण सिद्धि सुख के स्वामी बनें । इस सिद्धाचल की महिमा अचिन्त्य है। स्वयं श्री सीमंधरस्वामी भगवान ने इन्द्र महाराज के आगे

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