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सूत्र संवेदना-५ इसका महिमागान करते हुए कहा है कि, इस शāजय के समान कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। "कोई अनेरों जग नहीं ये तीर्थ तोले,
एम श्रीमुखहरि आगले श्री सीमंधर बोले ।" । यह पद बोलते हुए पवित्रता के स्थानभूत इस तीर्थ का स्मरण करके अंतरंग शत्रु को शांत करने और कर्ममल का प्रक्षालन करके आत्मा के विमल और अचल स्वरूप को प्रगट करने का शुभ संकल्प करना है । जिसके प्रत्येक कंकड़ पर अनंत आत्माओं ने सिद्धि पद को प्राप्त किया, जिस क्षेत्र के प्रभाव से पापी भी पुण्यात्मा बने, अधम भी उत्तम बने, उस क्षेत्र को भाव से वंदन कर, मैं अपनी आत्मा को शुद्ध बनाऊँ ऐसी भावना करनी है। गढ़ गिरनार :
गिरनार तीर्थ वर्तमान चौबीसी के बाईसवें तीर्थपति प्रभु नेमिनाथ की दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण की भूमि है। यह तीर्थ शत्रुजय तीर्थ का ही एक भाग माना जाता है। इसलिए उसकी महानता और पवित्रता भी उतनी ही है। यह सौराष्ट्र के जुनागढ़ शहर में है। आनेवाली चौबीसी के चौबीसों भगवान यहाँ से ही मोक्ष में जानेवाले हैं।
यह पद बोलते हुए इस पावनकारी तीर्थ का स्मरण कर वंदना करते हुए सोचना चाहिए कि,
'इस काल में तो मैं अभागा, प्रभु के साक्षात् दर्शन करके स्वयं में रहनेवाली प्रभुता को प्रगट नहीं कर सकता, परन्तु जब लगभग ८१,००० वर्षों के बाद यहाँ समवसरण रचा जाएगा, प्रभु पधारेंगे तब मैं उनके वचनों को सुनकर राजुल की तरह अनेक भवों के