Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 337
________________ ३२४ सूत्र संवेदना - ५ यह पद बोलते हुए पार्श्वनाथ प्रभु को स्मृतिपटल पर बिराजित कर उनके चरणों में मस्तक झुकाकर आत्मश्रेयार्थ वंदना करनी चाहिए । जीराउला : यह तीर्थ राजस्थान में है। इसके साथ ऐसा इतिहास जुड़ा हुआ है कि धांधल नाम के एक श्रावक को स्वप्न आया कि देवीत्री नदी की गुफ़ा में एक जिनबिंब है। उस मूर्ति को बाहर निकालने के बाद सं. १९०९ में जीरावली में उसकी प्रतिष्ठा की गई। एक बार सिक्खों ने मूर्ति के ऊपर खून के छींटे डाली और उसके नौ टुकड़े कर दिए। अधिष्ठायक देव की आराधना करने पर उन्होंने बताया कि उन नौ टुकड़ों को चंदन से चिपकाकर सात दिन मंदिर बंद रखें तो प्रभु की प्रतिमा अखंडित और सुयोग्य बन जाएगी। सातवें दिन एक बड़ा संघ यात्रा करने आया । इसलिए मंदिर खोला तब नौ खंड पूरी तरह चिपक गए थे परन्तु जोड़ स्पष्ट दिख रहे थे। समय जाते यह तीर्थ अत्यंत प्रसिद्ध हुआ । तब संघ ने जोड़ी गई नवखंडी जीर्ण मूर्ति को सिंहासन के दाईं ओर स्थापित कर मध्यभाग में पार्श्वनाथ भगवान की एक नई मूर्ति स्थापित की | जीराऊला पार्श्वनाथ की यह मूर्ति अत्यंत प्रभावशाली होने के कारण प्रतिष्ठा, शांतिस्नात्र आदि प्रत्येक मांगलिक कार्य में 'श्री जीराऊला पार्श्वनाथाय नमो नमः' मंत्र विशेष रूप से लिखा जाता है । यह पद बोलते हुए साधक को सोचना चाहिए “सदेह विचरण करते हुए प्रभु का प्रभाव तो होता है परन्तु स्थापना निक्षेप में रहनेवाले प्रभु का भी कैसा अद्भुत प्रभाव है। ऐसी प्रभावशाली इस प्रतिमा का नित्य स्मरण करूँ और उनके प्रभाव से अपने मोह का हनन कर आत्मानंद को प्राप्त करने का यत्न करूँ.... " -

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