Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 325
________________ सूत्र संवेदना - ५ ४. श्री वर्धमान अर्थात् वर्धमान गुणसमृद्धि को भोगनेवाले । यह गाथा बोलते हुए व्यंतर आदि लोक की सर्व शाश्वत प्रतिमाओं को स्मृति में लाकर साधक को सोचना चाहिए कि, ३१२ 'मैं भी शाश्वत हूँ और ये प्रतिमाएँ भी शाश्वत हैं। प्रत्येक प्रतिमा परमात्मा की आंतरिक निर्मलता को प्रकाशित करती है। अनादिकाल से चौदह राजलोक में भ्रमण करते-करते मैं अनंती बार इन प्रतिमाओं के पास से निकला हूँगा, अनंती बार इनके दर्शन भी किए होंगे, परन्तु भौतिक सुख में अंध बने हुए मैंने कभी भी प्रभु के वास्तविक दर्शन नहीं किए होंगे। इसलिए आज तक मैं भटक ही रहा हूँ। प्रभु ! मुझे ऐसी शक्ति दें कि मैं मात्र बाह्य चक्षु से ही आपके बाह्य सौंदर्य को देखकर संतोष न प्राप्त करूँ, बल्कि अपनी आंतरिक दृष्टि को खोलकर आपके आंतरिक दर्शन करूँ, आपके स्वभाव का संवेदन करूँ। हे नाथ! आज के उगते प्रभात में आपकी शाश्वत प्रतिमाओं को वंदन करते हुए ऐसी अभ्यर्थना करता हूँ कि आप जो शाश्वत सुखों को भोग रहे हैं, उस शाश्वत सुख की तरफ मेरा चित्त आकर्षित हो और नश्वर सुख के प्रति मुझे घृणा हो ।”

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