Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः (२) प्रमाता। यहां प्र उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त 'मीज्' धातु से तृच्’ प्रत्यय और उसके परे होने पर 'अचो गिति (७।२।११५) से 'मीज्' धातु को गुण रूप एच् विषय प्रस्तुत होने पर उपदेश अवस्था में ही मीञ्' धातु के एच् (ए) को इस सूत्र से आकार आदेश होता है।
(३) प्रमातुम् । यहां प्र उपसर्गपूर्वक मीञ्' धातु से तुमुन्णमुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्' (३।३।१०) से तुमुन् प्रत्यय है।
(४) प्रमातव्यम् । यहां प्र उपसर्गपूर्वक मीज्' धातु से 'तव्यत्तव्यानीयर:' (३।१।९६) से तव्यत् प्रत्यय है।
(५) निमाय । नि-उपसर्गपूर्वक 'डुमिञ प्रक्षेपणे' (स्वा०उ०) धातु से ल्यप्-विषय में पूर्ववत्।
(६) निमाता। नि-उपसर्गपूर्वक 'मि' धातु से एच्-विषय में पूर्ववत् । ऐसे ही-निमातुम्, निमातव्यम्।
(७) उपदाय । उप-उपसर्गपूर्वक दीङ् क्षये' (दि०आ०) धातु से ल्यप्-विषय में पूर्ववत् ।
(८) उपदाता। उप-उपसर्गपूर्वक दीङ्' धातु से एच्-विषय में पूर्ववत् । ऐसे ही-उपदातुम्, उपदातव्यम् ।
यहां उपदेश अवस्था में आकार आदेश विधान करने का यह प्रयोजन है कि इन 'मीञ्' आदि धातुओं से 'एरच्' (३।३।५६) से इकारान्त-लक्षण अच् प्रत्यय नहीं होता है और 'आतो युक् चिण्कृतो:' (७।३।३३) से आकारान्त लक्षण युक् आगम होता है-उपदायो वर्तते और 'आतो युच् (३।३।१२८) से आकारान्त लक्षण 'युच्' प्रत्यय होता है-ईषदुपदानम् । आकारादेश-विकल्प:
(७) विभाषा लीयतेः ।५१। प०वि०-विभाषा १।१ लीयते: ६।१। अनु०-धातो:, आत्, एच:, उपदेशे, ल्यपि च इति चानुवर्तते । अन्वय:-उपदेशे ल्यपि एचश्च विषये लीयतेर्धातोरेचो विभाषा आत्।
अर्थ:-उपदेशावस्थायामेव ल्यपि एचश्च विषये लीयतेर्धातोरेच: स्थाने विकल्पेनाकारादेशो भवति।
उदा०-ल्यपि विषये-विलाय, विलीय । एचो विषये-विलाता, विलातुम्, विलातव्यम्। विलेता, विलेतुम्, विलेतव्यम् ।