Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
यहां 'अताद का कथन इसलिये किया है कि यहां पाद के स्थान में 'पद्' आदेश न हो-पादार्थमुदकम्-पाद्यम् । यहां 'पादार्घाभ्यां च' (५/४/२५) से तादर्थ्य अभिधेय में 'यत्' प्रत्यय है।
पद्-आदेशः
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(६) हिमकाषिहतिषु च । ५४ । प०वि०-हिम- काषि-हतिषु ७ | ३ च अव्ययपदम् ।
स० - हिमं च काषी च हतिश्च ता हिमकाषिहतयः, तासुहिमकाषिहतिषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
अनु०-उत्तरपदे, पादस्य, पद् इति चानुवर्तते । अन्वयः-पादस्य हिमकाषिहतिषु चोत्तरपदेषु पद् । अर्थ:-पादस्य स्थाने हिमकाषिहतिषु चोत्तरपदेषु पद् आदेशो भवति । उदा०- (हिमम्) पादस्य हिममिति पद्धिमम् । हिमम् = शीतमित्यर्थः । (काषी) पादौ कषन्तीति पत्काषिणः । पादचारिण इत्यर्थ: । (हतिः ) पादाभ्यां हन्यते इति पद्धति: ।
उदा०
आर्यभाषाः अर्थ- ( पादस्य) पाद शब्द के स्थान में (हिमकाषिहतिषु) हिम, काषिन् और हति (उत्तरपदे ) उत्तरपद होने पर (च) भी (पद्) पद् आदेश होता है । - (हिम) पद्धिमम् । पांव को लगनेवाली ठण्ड । (काषी) पत्काषिणः । पांवों से चलनेवाले पैदल । (हति) पद्धतिः । जो पांवों से आहत की जाती है-राह, रीति । सिद्धि - (१) पद्धिमम् । यहां पाद और हिम शब्दों का षष्ठी (२121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है । इस सूत्र से 'पाद' के स्थान में हिम' उत्तरपद होने पर पद्' आदेश होता है। 'झयो होऽन्यतरस्याम् (८/४ / ६१ ) से हिम के हकार को पूर्वसवर्ण धकार आदेश होता है।
(२) पत्काषिण: । यहां पाद और काषिन् शब्दों का 'उपपदमतिङ्' (२ । २1१९ ) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से पाद के स्थान में काषिन् उत्तरपद होने पर पद् आदेश होता है । 'काषिन्' शब्द में 'कष हिंसार्थ:' ( भ्वा०प०) धातु से सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये (३1२ 1७८) से 'णिनि' प्रत्यय है। यहां 'कष' धातु गत्यर्थक है'अनेकार्था हि धातवो भवन्ति' ( महाभाष्यम्) ।
(३) पद्धति: । यहां पाद और हति शब्दों का पूर्ववत् उपपद तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'पाद' के स्थान में हति' उत्तरपद होने पर 'पद्' आदेश होता है। 'झो होऽन्यतरस्याम्' (८।४।६२ ) से हति' के हकार को पूर्वसवर्ण धकार आदेश होता है।