Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् दीर्घः
(८) सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ।८। प०वि०-सर्वनामस्थाने ७१ च अव्ययपदम्, असम्बुद्धौ ७।१ । स०-न सम्बुद्धिरिति असम्बुद्धि:, तस्याम्-असम्बुद्धौ (नञ्तत्पुरुषः) । अनु०-दीर्घः, अङ्गस्य, नामि, नस्य, उपधाया इति चानुवर्तते।
अन्वय:-नस्य अङ्गस्य उपधाया असम्बुद्धौ सर्वनामस्थाने च दीर्घः।
अर्थ:-नकारान्तस्याङ्गस्य उपधायाः सम्बुद्धिवर्जिते सर्वनामस्थाने च परतो दी? भवति।
उदा०-राजा, राजानौ, राजानः। राजानम्, राजानौ। सामानि तिष्ठन्ति, सामानि पश्य।
आर्यभाषा: अर्थ-(नस्य) नकारान्त (अङ्गस्य) अंग की (उपधाया:) उपधा को (असम्बुद्धौ) सम्बुद्धि से भिन्न (सर्वनामस्थाने) सर्वनामस्थान संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (च) भी (दीर्घः) दीर्घ होता है।
उदा०-राजा । एक राजा ने। राजानौ । दो राजाओं ने। राजानः । सब राजाओं ने। राजानम् । एक राजा को। राजानौ । दो राजाओं को। सामानि तिष्ठन्ति । बहुत साम हैं। सामानि पश्य । तू बहुत सामों को देख ।
सिद्धि-(१) राजा । राजन्+सु। राजान्+सु । राजान्+० । राजा० । राजा।
यहां राजन्’ शब्द से प्रथमा एकवचन की विवक्षा में 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। 'सु' प्रत्यय की 'सुडनपुंसकस्य' (१।१।४३) से सर्वनामस्थान संज्ञा है। इस सूत्र से नकारान्त राजन् अंग की उपधा को सर्वनामस्थान संज्ञक 'सु' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। ऐसे ही-राजानौ आदि।
(२) सामानि। सामन्+जस्। सामन्+शि। सामन्+इ। सामान्+इ। सामानि ।
यहां 'सामन्' शब्द से प्रथमा बहुवचन की विवक्षा में स्वौजसः' (४।१।२) से 'जस्' प्रत्यय है। जशशसो: शि:' (७।१।२०) से जस्' के स्थान में 'शि' आदेश होता है और इसकी शि सर्वनामस्थानम् (१।१।४२) से सर्वनामस्थान संज्ञा है। इस सूत्र से नकारान्त 'सामन्' अंग' की उपधा को सर्वनामस्थान संज्ञक 'शि' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। ऐसे ही शस्' प्रत्यय में-त्वं सामानि पश्य ।