Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् निपातनम्
(६) पितरामातरा च छन्दसि।३३। प०वि०-पितरा-मातरा १।२ च अव्ययपदम्, छन्दसि ७।१। स०-पिता च माता च ते-पितरामातरौ (पितरामतरा)। अनु०-छन्दसि पितरामातरा च।। अर्थ:-छन्दसि विषये पितरामातरा च शब्दो निपात्यते। अत्र पूर्वपदस्य पितृ-शब्दस्य उत्तरपदे अराङ् आदेशो निपात्यते।
उदा०-पिता च माता च ते-पितरामातरौ । छन्दसि-पितरामातरा। आ मा गन्तां पितरामातरा च (यजु० ९ ।१९)
आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (पितरामातरा) पितरामातरा शब्द (च) भी निपातित है।
यहां पितृ पूर्वपद को उत्तरपद परे होने पर अराङ् आदेश निपातित है। उदा०-पितरामातरौ । पिता और माता देवता।
सिद्धि-पितरामातरा। यहां पित और मात शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से द्वन्द्वसमास है। इस सूत्र से देवतावाची द्वन्द्वसमास में पितृ पूर्वपद को मातृ उत्तरपद परे होने पर वेदविषय में अराङ् आदेश निपातित है। आदेश के डित् होने से यह ङिच्च' (१।१।५३) से पितृ शब्द के अन्त्य ऋकार के स्थान में होता है। सुपां सुलुक०' (७।१।३९) से सुप्= 'औ' प्रत्यय के स्थान में 'आकार' आदेश और 'ऋतो डिसर्वनामस्थानयोः' (७।३।११०) से अंग को गुण होता है।
।। इति आदेश-प्रकरणम् ।।
स्त्रियाः पुंवद्भावप्रकरणम् पुंवद्भावः(१) स्त्रियाः पुंवद्भाषितपुंस्कादनूङ् समानाधिकरणे
स्त्रियामपूरणीप्रियादिषु ।३४। प०वि०-स्त्रिया: ६।१ पुंवत् अव्ययपदम्, भाषितपुंस्कादनूङ् लुप्तषष्ठीकं पदम्, समानाधिकरणे ७।१ स्त्रियाम् ७।१ अपूरणीप्रियादिषु ७।३।