Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- (संज्ञा-कण्ठ) शितिकण्ठः । नीले कण्ठवाला-शिव। नीलकण्ठः । नीले कण्ठवाला-शिव। (औपम्य) खरकण्ठः । गधे के कण्ठ के समान कण्ठवाला पुरुष। उष्ट्रकण्ठः। ऊंट के कण्ठ के समान कण्ठवाला पुरुष। (संज्ञा-पृष्ठ) काण्डपृष्ठः । सैनिक/शस्त्रजीवी। नाकपृष्ठः । संज्ञाविशेष। (औपम्य) गोपृष्ठः । गौ (बैल) की पीठ के समान पीठवाला पुरुष। अजपष्ठः । अज (बकरा) की पीठ के समान पीठवाला पुरुष। (संज्ञा-ग्रीवा) सुग्रीवः । सुन्दर गर्दनवाला-रामायणकालीन एक राजा का नाम। नीलग्रीवः । नीली गर्दनवाला-शिव। (औपम्य) गोग्रीवः । गौ (बैल) की गर्दन के समान गर्दनवाला पुरुष। अश्वग्रीवः । घोड़े की गर्दन के समान गर्दनवाला पुरुष। (संज्ञा-जङ्घा) नारीजङ्घः । संज्ञाविशेष। तालजङ्घः । तालजङ्घ नामक देश का राजा/एक वीरजाति के पूर्वज का नाम। (औपम्य) गोजङ्घः । गौ की जंघा के समान जंघावाला पुरुष। अश्वजङ्घः । घोड़े की जंघा के समान जंघावाला पुरुष । एणीजङ्घः । काली हिरनी की जंघा के समान जंघावाला पुरुष।
सिद्धि-(१) शितिकण्ठः। यहां शिति और कण्ठ शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से संज्ञाविषयक बहुव्रीहि समास में कण्ठ उत्तरपद को आधुदात्तस्वर होता है। ऐसे ही-काण्ठपृष्ठ: आदि।
(२) खरकण्ठः । यहां खर और कण्ठ शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से औपम्य विषयक बहुव्रीहि समास में कण्ठ उत्तरपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-गोपृष्ठ: आदि। आधुदात्तम्
(५) शृङ्गमवस्थायां च।११५ । प०वि०-शृङ्गम् १।१ अवस्थायाम् ७१ च अव्ययपदम्। अनु०-उदात्त:, बहुव्रीहौ, उत्तरपदादिः, संज्ञौपम्ययोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-अवस्थायां संज्ञौपम्ययोर्बहुव्रीहौ शृङ्गम् उत्तरपदादिरुदात्त:।
अर्थ:-अवस्थायां संज्ञायाम् औपम्ये च विषयके बहुव्रीहौ समासे शृड्गशब्द उत्तरपदम् आधुदात्तं भवति।
उदा०-(अवस्था) उद्गते शृङ्गे यस्य स:-उद्गतशृङ्गः । द्वयङ्गुले शृंगे यस्य स:-व्यङ्गुलशृङ्ग: । त्र्यगुलशृङ्गः । अत्र शृङ्गोद्गमादिकृतो गवादेर्वयोविशेषोऽवस्था ज्ञायते। (संज्ञा) ऋष्यशृङ्गः । (औपम्यम्) गोशृङ्गे इव शृङ्गे यस्य सः-गोशृङ्गः । मेषशृङ्गः ।