Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष: (१) अङ्ग-श्री गंगा के तट पर अवस्थित प्राचीन एक प्रसिद्ध राज्य। इस राज्य की राजधानी का नाम चम्पा नगरी था। चम्पा नगरी का दूसरा नाम अनङ्गपुरी भी था। यह चम्पा नगरी आधुनिक भागलपुर के समीप विहार प्रान्त में थी (श०को०)।
(२) कलिङ्ग-उड़ीसा के दक्षिण की ओर का प्रदेश। यह प्रदेश गोदावरी नदी के उद्गम स्थान तक फैला हुआ था। इस राज्य की राजधानी कलिङ्गनगर, समुद्र-तट से कुछ फासले पर थी, और सम्भवत: उस स्थान पर भी जहां आधुनिक राजमहेन्द्री नामक नगर है (श०को०)। आकार-आदेश:
(५) विड्वनोरनुनासिकस्यात्।४१। प०वि०-विट्-वनो: ७।२ अनुनासिकस्य ६१ आत् ११ ।
स०-विट् च वन् च तौ विड्वनौ, तयो:-विड्वनो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-अङ्गस्य इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अनुनासिकस्याङ्गस्य आत्, विड्वनोः । .
अर्थ:-अनुनासिकान्तस्याङ्गस्य आकार आदेशो भवति, विटि वनि च प्रत्यये परतः। ___ उदा०-विट्-(जन्) अब्जा:, गोजा, ऋतजाः, अद्रिजाः। (सन्) गोषा इन्द्रो नृषा असि। (खन्) कूपखा:, शतखाः, सहस्रखा: । (क्रम्) दधिक्रा: । (गम्) अग्रेगा उन्नेतृणाम्। वन-विजावा, अग्रेजावा।
आर्यभाषा: अर्थ-(अनुनासिकस्य) अनुनासिक जिसके अन्त में है उस (अङ्गस्य) अंग के (अनुनासिकस्य) अनुनासिक के स्थान में (आत्) आकार आदेश होता है (विड्वनो:) विट् और वन् प्रत्यय परे होने पर।
उदा०-विट्-(जन्) अब्जा:। जल में उत्पन्न होनेवाला। गोजा। गौओं में उत्पन्न होनेवाला। ऋतजाः। ठीक/उचित स्थान पर उत्पन्न होनेवाला। अद्रिजाः । पहाड़ पर उत्पन्न होनेवाला। (सन्) गोषा इन्द्रो नृषा असि । गोषा-गोदान करनेवाला। नृषा: नरदान करनेवाला। (खन्) कूपखाः। कूआ खोदनेवाला। शतखाः। सौ कूप खोदनेवाला। सहस्रखा: । हजार कूप खोदनेवाला। (क्रम्) दधिक्रा: । घोड़ा। (गम्) अप्रेगा उन्नेतृणाम् । अग्रेगा: आगे चलनेवाला। वन्-विजावा । उत्पन्न होनेवाला। अग्रेजावा । आगे उत्पन्न होनेवाला। अग्रे प्रारम्भ में।