Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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उदा०-(गति) प्रकृष्ट: कारक: इति प्र॒कार॑क: । प्र॒हार॑कः । प्रकृष्टं करणमिति प्र॒कर॑णम् । प्र॒हर॑णम् । ( कारकम् ) इध्मं प्रव्रश्च्यते येन स:इ॒ध्म॒प्रव्रश्च॑नः । पलाशानि शात्यन्ते येन सः - पलाश॒शात॑न : ( दण्डविशेष : ) । श्मश्रु कल्प्यते येन स:-श्म॒श्रुकल्प॑नः । ( उपपदम् ) ईषत् क्रियते इति ईषत्करः॑ । दुष्करैः । सु॒करः॑ ।
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आर्यभाषाः अर्थ- (तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में (गतिकारकोपपदात्) गति, कारक और उपपद से परे (कृत्) कृत्-प्रत्ययान्त ( उत्तरपदम् ) उत्तरपद ( प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा०- - (गति) प्रकारेक: । उत्तम रीति से बनानेवाला । प्रहारेक: । उत्तम रीति से हरण करनेवाला । प्र॒करेणम् । उत्तम रीति से बनाना । प्र॒हणम् । उत्तम रीति से हरण करना । (कारक) इध्मप्रव्रश्च॑नः । इंधन को काटने का साधन - कुल्हाड़ा। पलश॒शात॑नः । पत्तों को तोड़ने का साधन-दण्डविशेष। श्म॒भ्रुकल्प॑नः । मूंछ को काटने का साधन-कैंची आदि । (उपपद) ईषत्करेः। थोड़े प्रयत्न (सुख) से बनाने योग्य। दुष्करे: । दुःख से बनाने योग्य। सु॒करे। सुख से बनाने योग्य।
सिद्धि - (१) प्र॒कारेक: । यहां प्र और कारक शब्दों का 'कुगतिप्रादयः' (२।२1१८ ) से गति तत्पुरुष समास है। प्र-शब्द की 'गतिश्च' (१।४।५९ ) से गति-संज्ञा है। इस सूत्र से गति-संज्ञक प्र-शब्द से परे कृदन्त कारक उत्तरपद को प्रकृतिस्वर होता है। कारक शब्द में 'डुकृञ् करणे' (तना० उ०) धातु से 'वुल्तृचौं' (३ 1१ 1१३३ ) से कृत् - संज्ञक ण्वुल् प्रत्यय है। प्रत्यय के लित् होने से 'लिति' (६।१।१९३) से प्रत्यय से पूर्ववर्ती अच् उदात्त है। ऐसे ही-प्रहारेकः ।
(२) प्र॒करेणम् । यहां प्र और करण शब्दों का पूर्ववत् गतिसमास है । करण शब्द में 'ल्युट् च' (३ | ३ |११५ ) से भाव अर्थ में ल्युट् प्रत्यय है। प्रत्यय के लित होने से पूर्ववत् प्रत्यय से पूर्ववर्ती अच् उदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही प्र॒हरेणम् ।
(३) इ॒ध्मप्र॒व्रश्च॑नः । यहां इध्म और प्रव्रश्चन शब्दों का 'षष्ठी' (2121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इध्म कारक से परे कृदन्त प्रव्रश्चन उत्तरपद को प्रकृतिस्वर है। 'प्रव्रश्चन' शब्द में प्र-उपसर्गपूर्वक 'ओव्रश्च छेदने' (तु०प०) धातु से 'करणाधिकरयोश्च' ( ३/३ । ११७) से करण कारक में कृत्-संज्ञक ल्युट् प्रत्यय है। अतः यहां 'लिति' (६।१।१९३) से प्रत्यय से पूर्ववर्ती अच् उदात्त है।
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(४) प॒ला॒श॒शात॑नः । यहां पलाश और शातन शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से पलाश कारक से परे कृदन्त शातन उत्तरपद को प्रकृतिस्वर होता है। शातन शब्द में णिजन्त 'शट्ट शातनें (भ्वा०प०) से पूर्ववत् ल्युट् प्रत्यय और 'शदेरगतौ तः' (७।३।४२) से धातु को तकार- आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।