Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
३६२
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् जिसमें बहुत यव-जौ होते हैं। बहुव्रीहिर्देश: । वह देश कि जिसमें व्रीहि चावल अधिक होते हैं। बहुतिलो देश: । वह देश कि जिसमें तिल अधिक होते हैं।
(२) कपि पूर्वम्' (६।२।१७३) से बहुव्रीहि समास में नञ्-शब्द से परे उत्तरपद को कप्-प्रत्यय से पूर्व अन्तोदात्त स्वर कहा है सो बहु-शब्द से परे भी होता है-बहुकुमारीको देशः। वह देश कि जिसमें कुमारियां बहुत हैं। बहुवृषलीको देश: । वह देश कि जिसमें बहुत वृषलियां हैं। वृषली-अविवाहित रजस्वला कन्या। बहुब्रह्मबन्धूको देश: । वह देश कि जिसमें ब्रह्मबन्धू स्त्रियां बहुत हैं। ब्रह्मबन्धू पतित ब्राह्मणी।
(३) 'हस्वान्तेऽन्त्यात् पूर्वम् (६।२।१७४) से बहुव्रीहि समास में नञ्-शब्द से परे ह्रस्वान्त उत्तरपद को कप्-प्रत्यय परे होने पर अन्तिम वर्ण से पूर्ववर्ती वर्ण को उदात्त स्वर कहा है सो बहु-शब्द से भी परे होता है-बहुयवको देश: । वह देश कि जिसमें यव अधिक होते हैं। बहुव्रीहिको देश: । वह देश कि जिसमें व्रीहि अधिक होते हैं। बहुमाषको देशः । वह देश कि जिसमें माष अधिक होते हैं।
(४) नञो जरमरमित्रमृताः' (६।२।११६) से बहुव्रीहि समास में नञ्-शब्द से परे जर, मर, मित्र और मृत उत्तरपदों को आधुदात्त स्वर कहा है सो बहु-शब्द से परे भी होता है-बहुजरः । बहुत है जर (जीर्णता) जिसका वह पुरुष। बहुमरः । बहुत है मरण जिसका वह पुरुष । बहुमित्र: । बहुत हैं मित्र जिसके वह पुरुष । बहुमृतः । बहुत हैं मृत जिसके वह पुरुष।
सिद्धि-बहुयवो देश: आदि पदों की सिद्धि 'अयवो देश:' आदि पदों के समान है। उन्हें यथास्थान देख लेवें। अन्तोदात्तप्रतिषेधः
(३४) न गुणादयोऽवयवाः ।१७६ । प०वि०-न अव्ययपदम्, गुण-आदय: ११३ अवयवा: १।३ । स०-गुण आदिर्येषां ते गुणादय: (बहुव्रीहिः)।। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, बहुव्रीहौ, बहोरिति चानुवर्तते । अन्वय:-बहुव्रीहौ बहोरवयवा गुणादय उत्तरपदम् अन्त उदात्तो न।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे बहु-शब्दात् परेऽवयववाचिनो गुणादय: शब्दा उत्तरपदानि अन्तोदात्तानि न भवति।
उदा०-बहवो गुणा यस्यां सा-बहुगुणा रज्जुः। बहक्षरं पदम्। बहुच्छन्दोमानं यस्मिंस्तत्-बहुच्छन्दोमानं काव्यम् । बहूनि सूक्तानि यस्मिन्