Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 742
________________ ७२५ षष्टाध्यायस्य चतुर्थः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (ऋत्व्य०हिरण्ययानि) ऋत्व्य, वास्त्व्य, वास्त्व, माध्वी, हिरण्यय शब्द निपातित हैं। उदा०-ऋत्व्यम् । ऋतु में होनेवाला । वास्त्वम् । वास्तु-घर में होनेवाला । वास्त्वः । वस्तु में होनेवाला। माध्वी: । मधु-सम्बन्धिनी। हिरण्ययम् । हिरण्य-सुवर्ण का विकार। सिद्धि-(१) ऋत्व्यम् । ऋतुझ्यत् । ऋतु+य। ऋत्त्+य । ऋत्व्य+सु । ऋत्व्यम् । यहां ऋतु' शब्द से 'भवे छन्दसि' (४।४।११०) से भव-अर्थ में यत्' प्रत्यय है। यत्' प्रत्यय परे होने पर 'ऋतु' के उकार को यणादेश (व्) निपातित है। ऐसे ही 'वास्तु' शब्द से-वास्त्व्यम्। (२) वास्त्वः । वस्तु+अण् । वास्तु+अ। वास्त्व+अ। वास्त्व+सु । वास्त्वः । यहां वस्तु' शब्द से तत्र भवः' (४।२/५३) से भव-अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। 'ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अङ्ग को गुण प्राप्त था, किन्तु निपातन से यणादेश (व्) होता है। (३) माध्वी: । मधु+अण् । माधु+अ+डीप् । माध्+अ+ई। माध्+o+ई। माध्वी+सु। माध्वीः। यहां 'मधु' शब्द से तस्येदम् (४।३।१२०) से 'अण' प्रत्यय है। स्त्रीत्व-विवक्षा में टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप्' प्रत्यय होता है। ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अङ्ग को गुण प्राप्त है, किन्तु स्त्रीलिङ्ग में यणादेश (व्) निपातित है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अङ्ग के अकार का लोप होता है। (४) हिरण्ययम् । हिरण्य+मयट्। हिरण्य+मय। हिरण्य+य। हिरण्यय+सु । हिरण्ययम्। यहां हिरण्य' शब्द से ‘मयड्वैतयोर्भाषायाम०' (४।३।१४३) से विकार-अर्थ में 'मयट्' प्रत्यय है। निपातन से 'मयट्' प्रत्यय के मकार का लोप होता है। ।। इति भसंज्ञाधिकार: सम्पूर्णः ।। इति श्रीयुतपरिव्राजकाचार्याणाम् ओमानन्दसरस्वतीस्वामिनां महाविदुषां पण्डितविश्वप्रियशास्त्रिणां च शिष्येण पण्डितसुदर्शनदेवाचार्येण विरचिते पाणिनीयाष्टाध्यायीप्रवचने षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः । समाप्तश्चायं षष्ठोऽध्यायः ।। ।। इति पञ्चमो भागः।।

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