Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 725
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) प्रेमा। यहां 'प्रिय' शब्द से 'पृथ्वादिभ्य इमिज्वा' (५ | १ | १२२ ) से 'इमनिच्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के परे होने पर 'प्रिय' को 'प्र' आदेश होता है। ऐसे ही - वरिमा, बंहिमा, द्राघिमा । ७०८ प्रिय, उरु, बहुल और दीर्घ शब्द पृथ्वादिगण में पठित हैं अतः इने पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा' (५।१।१२२) से भाव - अर्थ में 'इमनिच्' प्रत्यय होता है, शेष शब्दों से नहीं । इष्ठेमेयस्साम् आदिलोपः (३०) बहोर्लोपो भू च बहोः । १५८ । प०वि० - बहोः ५ ।१ लोप: १ । १ भू १ ।१ (सु-लुक्) च अव्ययपदम्, बहोः ६।१ । अनु० - अङ्गस्य, भस्य, इष्ठेमेयस्सु इति चानुवर्तते । अन्वयः - बहोर्भाद् अङ्गाद् इष्ठेमेयसां लोप:, बहोश्च भूः । अर्थः-बहोरित्यस्माद् भसंज्ञकाद् अङ्गाद् उत्तरेषाम् इष्ठेमेयसां प्रत्ययानाम् आदिलोपो भवति, बहोश्च स्थाने भूरादेशो भवति । उदा०- ( इमनिच्) भूमा। ( ईयसुन्) भूयान् । अग्रे इष्ठस्य यिडागमं वक्ष्यति (६।४।१५९) । आर्यभाषाः अर्थ- (बहोः) बहु इस (भात्) भ-संज्ञक (अङ्गात् ) अङ्ग से परे (इष्ठेमेयसाम्) इष्ठन्, इमनिच्, ईयसुन् प्रत्ययों के आदिम वर्ण का (लोपः) लोप होता है (च) और (बहोः) बहु के स्थान में (भूः) भू आदेश होता है। उदा०- - ( इमनिच्) भूमा । बहुता (अधिकता ) | ( ईयसुन्) भूयान् । दोनों से बहु (अधिक) । पाणिनि मुनि आगे 'इष्ठस्य यिट् च' ( ६ । ४ । १५९) से 'इष्ठ' को 'यिट्' आगम का विधान करेंगे अत: यहां 'इष्ठन्' का उदाहरण नहीं दिया है। सिद्धि - (१) भूमा । बहु + इमनिच् । बहु + इमन् । भू+इमन्। भू+०मन् । भूमन्+सु । भूमा । 1 यहां 'बहु' शब्द से 'पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा' (५ । १ । १२२) से 'इमनिच्' प्रत्यय है । 'बहु' शब्द से उत्तरवर्ती इस प्रत्यय के इस सूत्र में आदिवर्ण (इ) का लोप होता है। 'आदेः परस्य ' (१1१।५४) के नियम से 'इयसुन्' प्रत्यय के आदिम वर्ण का लोप किया जाता है। 'बहु' के स्थान में 'भू' आदेश भी होता है । (२) भूयान् । बहु + ईयसुन् । बहु + ईयस् । भू+व्यस्। भूयस्+सु। भूयान् । यहां 'बहु' शब्द से 'द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौं' (५1३1५७)' 'ईयसुन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।

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