Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 56
________________ ( ३३ ) था, उन का भी मोक्ष में जाना स्वीकार नही करते। इस विषय में श्वेताम्बर सम्प्रदाय की यह मान्यता है कि स्त्री का मोक्ष होता है, और मरुदेवी माता का भी हाथी पर बैठी हुई का मोक्ष हुवा है, जिस का कुछ वृत्तान्त हम यहां बतलाते हैं । प्रथम तीर्थकर श्रीऋषभदेव भगवान राज्य वैभव छोड कर साधु-निर्ग्रन्थ अवस्था में आये बाद विहार कर गये और लोगों को उपदेश देते रहे। बहुत समय निकल जाने पर भी वापस वनिता नगरी की तरफ नहीं आये थे । इसलिये पुत्रवियोग के कारण वात्सल्यभाव से मरुदेवी माता नित्य प्रति प्रभु को याद किया करती थी और कभी कभी भरत चक्रवर्ती को कहती थी के हे पौत्र | मुझे ऋषभ से मिलादे ! इस प्रकार पुत्रवियोग और चिन्ता के कारण वृद्धावस्था में मरुदेवी माता के नैत्रोंपर पर्दा छा गया | एकदा श्रीऋषभदेव भगवान जब वनिता नगरी के समीप पधारे और वनरक्षकने यह समाचार भरत चक्रवर्ती को पहुंचाये । फिर क्या था ? आनन्द छा गया और भरत महाराजने शीघ्र ही मरुदेवी माता के निकट जा कर प्रभु के आगमन की खबर सुनाई । मरुदेवीजी अत्यन्त हर्षित हुई, और भरत चक्रवर्तीने प्रभु के दर्शनार्थ जाने की तैयारियां कराली । मरुदेवीजी को हाथी पर बिठलाई गई और रवाना हुवे कुछ रास्ता पार करने के बाद दैवरचित रत्नजडित समवसरण नजर आया, जिस की महिमा भरत महाराज मरुदेवीजी को बताने ३

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