Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ ( ९० ) रीषभ जिणंदावे, अरेहां सोभागी ग्यान दिणंदा, विषम पंथ वन गहन सघन तरु गिरवर अनड पहाड निझरणां नदीयां वहे झंगि वली बहुला झाड ॥ सा० ॥ २॥ खग्गदेश देशां अति उत्तम, नगर धुलेव विख्यात ॥ तिहां देवल. प्रभुजीतणो, सोहे शशि जिम अवदात ॥ ३ ॥ शत्रुजे गिरनार संखेश्वर, अरबुद सम्मैत वैभार ॥ तिम तिरथ महिमा निलो, धुलेवे ऋषभ जुहार ॥ ४ ॥ देशना संघ अहोनिश, जुगते आवे जात्र ॥ केशर अगर कपूर सों, चंदन मिल चरचागात ॥ ५ ॥ धूप दीप नैवैद्य कुसुमवर, आरती मंगल दीप ॥ भावना भावे भावसों, सुहव सिणगार समीप ॥ ६ ॥ भांत भांतना परिघल भोजन, साहमी वच्छल सार ॥ दान समायै दोलती जाचक, बोले जय जयकार ॥ ७ ॥ उसवंश सिणगार हिरणनवः साहलालनो पुत्र ॥ प्रतपो जीवो संघवी, धन धन जस जनम पवित्र ॥८॥ मात मुरादेवीनो नंदन, बहु जस रूपदे कंत । जसनामी जीवो हिरण, जिण पुरी जात्र नीषत ।। ९ ॥ उदीयापुरथी जिण संघ किधो भेटीया रिषभ जिणंद ॥ धन खरची बहु जस लीधो, नाम राख्यो जा रविचंद ॥ १० ॥ संवत् सत्तरसें सत्ताणुवे, सुदी पंचमी मृग मास । जात्र करी जिणवर तणी, पुगी सब मनरी आस ॥ ११ ॥ तपगच्छमंडण सकल विबुधवर, विनीतसागर गुरु सीस ॥ वाचक भोजसागरतणी, सफली भइ मनरी जगीस ॥ १२ ॥ इति ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148