Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ ( ८६ ) ( ३ ) ॥ श्री आदिनाथजी को स्तवन || चालो आदि जिनंदजी को पूजवा, जिठै सामलियो जिनराज रीखभजी | चालो आदि जिनंद पूजवा || मैंतो पूजांला मन वच काय रीखभजी ॥ १ ॥ प्रभु विकट पहारां निराजिया, जिठै सांवरियो महाराज, रुषभ जिनजी चालो आदि जिनंदजी ने पूजवा || २ || प्रभु श्रोड पास देहरां चण्या ॥ जिठै बिच बिराजे आप || ऋषभ जिनजी चालो आदि जिनंदजीने पूजवा ॥ ३ ॥ प्रभू हस्ती तोही दै बारणां, जिठै नइठी मोरादेवी माय || ऋषभ जिनजी ॥ ४ ॥ प्रभु केशर घीस्या ज्युं भावस्युं, मैंतो चरचालां प्रभुजीरो गात || ऋषभ || ५ || प्रभु बागो तो सोहे थाने केसरयां, जीमें सोनारा फुल जडाव || ऋषभजी ॥ ६ ॥ प्रभु सिंघासन थांको हद बन्यो, जीमें चोवीसीरो भाव || ऋषभ ।। ७ ।। प्रभु छतरी तो थांकी हद बनी, जिमें गिरनारांरो भाव ॥ ऋषभ ॥ ८ ॥ प्रभु संघ आवे चिहुं देस से, जाका मनमांही हरक उच्छाई ॥ ऋषभ ॥ ९ ॥ प्रभु धुलोजीगढ सोहामणो । तामें देस बडो मेवाड || ऋषभ ॥ १० ॥ प्रभुजी नरनारी जो गावसी, सोतो जासे मुक्ति मोझार ॥ ऋषभ ॥ ११ ॥ प्रभु सतरसें संवत तीश्रोतरी, प्रभु भादव सुदी चवदसीं जाणी ।। ऋषभ ।। १२ ।। प्रभु भोजोजी भावस्युं विनवे || वोतो रहे थे छारेडारे बीज || ऋषभ ॥ १३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148