Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 123
________________ ( 66 ) जुगादि देव देव है, तुं सर्व देव सेव है, अनाथ नाथ सामीजी के चरणां चित ल्याइयै ॥ विशुद्ध || ५ || तुंम ज्ञान के निधान है, तुं हीन दीन त्राण है, तुं हेममान भग्न है, सुजानतौ प्रधान है, अरियन को मृदान है, जो तुं बीराजमान है, प्रमाण आण बाहरी तौ नामतौ कल्याण है, तुं सुख को निवास है, तुं ज्योति को प्रकाश है, तुं मोह पास, द्रढ बंध तोहितैं मिटाइये || विशुद्ध || ६ || पवीत कीत कारणौ, समंदनंद आरणौ, ज्योती नी रूप धारणौ, विरह अमीजरौ, सुदेश देश धारकौ, निरेस लोक वृंद, आवई तु देव जानि कैषरौ, कस्तुरी का कपूर चूर, भूरि भावसुं भविक, पूजाय नाथजी के भावना सुभाइयै ॥ विशुद्ध ॥ ७ ॥ तुं न देव साधमान, देव कौन तौ समान, कोट काम तो परै, जुवारी वारी डारियै, तीनेश भ्रम भांजिये, गुण सुरंद, नाभि निरंद के, जिनंद के पादारवंद्य, वदतां सुरिद्धि सिद्धि पाइयै, विशुद्ध भाव आनि के मुगति हेत जानी कै, धूलेवगांव खग्गदेश, आदिदैव ध्याइयै जुगादीदेव ध्याइयै ॥ ८ ॥ इति श्री आदीनाथ अष्टक संपूर्ण | (9) २ सारीकर २ श्री ऋषभ केशरिया तुझ समो अवर न देव कोई, रयण चिंतामणी सरुतरु तु धरणी कामकुंभ कामगवी नया जोई || सा० २० टेक || धन्य नाभीरायनो कुलकमल दिवाकरु. मात मरुदेवीनो नंद नीको, आज कलो कालमां सांच रयणायरु, जाच हीरो त्रिभुवन टीको || सा० ॥ १ ॥ सकल

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