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( ७६ ) __" भीलों के उपद्रव से छे सात हजार भीलोंद्वारा ऋषभदेव का मन्दिर घेरे जाने का समाचार सुन कर महाराणा की सेना उधर गई, और सारे रास्ते में लडाई होती रही। "ऋषभदेव पहुंच कर श्यामलदासने भीलों को समझाने के लिये वहां के पुजारी खेमराज भण्डारी को उन के पास भेजा वगैराह."
इस समय भी आफत का सामना था। लेकिन भील लोग तो यहां की मानतावाले हैं इस लिये आक्रमण करने तो नही आये होंगे लेकिन शरण में आये हों एसा अनुमान है; तथापि इतिहास जो कहता है उसी पर भरोसा करना पड़ेगा।
तीसरी आपत्ति जो संवत् १९८४ में उपस्थित हुई थी जिस का कुछ हाल लिखेंगे | बात यह थी के सम्वत् १९८४ वैशाख सुदि ५ शुक्रबार को ध्वजादण्ड चढाने का महुर्त था और तद् विषयक क्रियाकाण्ड जारी था। दरम्यान में वैशाख सुदि ३ बुधवार अक्षय तृतीया मुताबिक तारीख चार माह मई सन १९२७ ईस्वी का जिकर है कि बावन जिनालय में जो प्रतिमायें स्थापित हैं उन पर मुकुट, कुण्डल व आंगीया धारण कराने का काम हो रहा था । उस समय हमारे दिगम्बर भाई जो वहां उपस्थित थे उन्होंने मुकुट कुण्डल आदि चढानेवालों को मना किया। लेकिन यह अनुचित बात थी । जो व्यवहार पुरातन काल से चला आता है, जिस को दिगम्बर समाज भी करीब तीनसौ वर्ष से व डेडसौ साल से जारी होना मंजूर