Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 126
________________ (६१) ॥६६०॥श्री गुरुभ्यो नमः श्री परमात्मा श्री ऋषभदेवस्वामी नमः। दोहो. सकल मनोरथ पुरणो, जपतां श्री जिनराज ॥ घींग धणी धूलेवनो, सो परतिष्य परचो आज आगे तो सूणी इसिः, वस्या एवंति वासिः ॥ लाया था राघव लंकसूः, आदी जोनपुरी आस ॥२॥ थिर थानिक तिहां भाळीया, एवंति आदि जिनेंद ॥ प्रथम नाथ एसो प्रगट, सेवे सूरनर इंद भविक जीव संकट हरे, सो मयणा दीधी मान ।। रोग टली संपत मली, कीधो राव श्रीपाल ॥ ४ ॥ पड पाटणे बडोदरे, राघव हुवो तिहां रोग ।। सुपनंतर संपतियां, दूर गयो भय सोग ॥५॥ चरण धरण कर चालतो, आयो आवति इह ॥ नमण करी करुणा नीधी, सो दीये कंचन देह अवर मूरती थापी तिहां, आदि जिन लायो आप ॥ त्रिहुं काल पूजा करे, सो जपे निरंतर जाप छंद मोतीदाम. जपे जिनराजतणो जेह जाप, परंत सोई दुरित पाप, माभिराय नंदतणो वड नाम, वरागर देश बडोदो हो गाम ॥१॥

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