Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 134
________________ ( ९९ ) अांगी तेरी खुब बनी है, बुटी सोभे गले मोतीन को हार बिराजे, शोभा दीसे चमरी तोरे उडे सीरपर, रीषभदेव की ठमक ठमक तोरो मादल जमके, झरणण झणण नाद झालरका । घनन घनन तोरा घंटा बाजे, डंका बाजे नोबत का || समीसांज की होवे आरती, मंडप मांहे भीड भारी ॥ ४ ॥ नीत नीत तोरी अांगी सोहे, मुगट की गत हे न्यारी ॥ सीर पर तोरे छत्र बिराजे, सामली सुरत दीसे प्यारी || एक दीन में त्रण रुपज होता, देखत है सब नरनारी ॥ ५ ॥ चार खंड में नाम तोरा, संघ आवे सब देसन का | छत्रीस खावींद आणा माने, तुम समरण अरिहंतो का || सर्ग लोक पाताल लोक में, मृतलोक माने भारी ॥ ६ ॥ रीषभदेव का दर्शन करता, पाप जावे भवोभव का । समरण करता बेडी भांगे, बंध टूटे सब कर्मों का ॥ भीलडा तोरी आणज माने, एसो परतो है भारी || संवत अढार ओगणसाठ, आसाढ सुद बीजे दिन बुधवारी ॥ इडरगड का संगज आया, जात्रा करे सब नरनारी ॥ मानता तोरी सहुको माने, एसो परतो हे भारी ॥ ८ ॥ दरीसन करता जोडी लावणी, सुनलो उन का ठीकाना । राव मलार का कडी परगणा, गाम ऊन का मेसाणा ॥ रूपविजयजी सेवक तमारो, सुन ल्यो प्रभु अरज मेरी ॥ ६ ॥ जडावन की । कुंडल की ॥ बलिहारी ॥ ३ ॥

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