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(४० ) चन्दजी दीवान-मंत्री थे और राजसत्तावाले थे इस कारण ध्वजादण्ड चढा दिया, लेकिन यह कथन प्रमाण रहित है। क्यों कि सेठ सुलतानचन्दजी जब धुलेव गांव की तरफ रवाना हुने हैं तब भण्डारी के नाम महाराणाधिराज श्रीजवानसिंहजी से एक पत्र लिखवा कर ले गये हैं। अगर राजसत्ता का मद होता और बल का उपयोग कर ध्वजादण्ड चढाया होता तो महाराणासाहब के कागज की आवश्यकता नहीं होती। देखिये कागज की नकल ।
श्रीरामजी श्रीएकलिंगजी
साबत श्रीनाथजी स्वस्ति श्री हजूररो हुकम श्री रिखवदेवजी भंडारी पंडा है अपरंच धजादंड चढ़ावा सारं सुलतानचंद आयो है सो कामकाज में हाजर रेजो ओर श्री भगवानरे आभूषणरी रकम गेणा की चढे सो अठे मालुम हुइ के पंडा भांगे नाखें है सो या बात ठीक नहीं. आभूषणकी रकम साबतरे ने पंचा की तथा जोरावरमल की सुरत सुं उठे भंडार को बंदोबस्त रहे कोई बातरी कसर पडी है तो अोलंभो पाओगा. संवत् १८८६ मिगसर वद १४ ।
इस पत्र को देखते यही तय होता है कि कुंवर सुलतानचंदजीने यह पत्र धुलेव के भंडारीयों के नाम अपनी सुविधा के लिये लिखाया होगा। मंत्रीपदवाला निज के अधिकारवाले गांव में जावे और पत्र की आवश्यकता समझे यह मानने