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(५८ ) तथा समेतशिखर उर्फे पार्श्वनाथ पहाड जो बंगाल में है यह तमाम पूजा की जगह हीरवीजेसुर जैन श्वेताम्बर आचार्य को देदी गई है........वगैराह
श्रीमान् अकबर बादशाहने यह दस्तावेज सम्वत् १९३५ में जैनाचार्यजी को लिख दी जिस की पूरी नकल " कृपारस कोष " व " सूरीश्वर और सम्राट " नाम की पुस्तकों में छपी है, और यह परवाना श्रीमान् सिद्धिचन्द्रजी भानूचन्द्रजी जो आचार्य श्रीहीरविजयसूरिजी के शिष्य थे और बादशाहने आप को “ खुशफहम" की पदवी दी थी व इन के चरण तीर्थ केसरियानाथजी में मरुदेवीजी के हाथी के पास ही स्थापित हैं, इन के साथ आचार्य महाराज के पास परवाना भेजा था । जिस का सिबूत कृपारस कोष पृष्ठ ३९ पर छपा है और मूल ग्रन्थ पृष्ठ २१ पर बयान है कि___“ यजीजिया आकर निवारण मेषचक्रे, या चैत्यमुक्तिरपि दुर्दममुद्ग लेभ्यः। यहन्दिवन्धनमपा कुरुते कृपाङ्गो यत्सत्करो त्यवमराजगणो यतीन्द्रान् ।। १२६ ॥
य जन्तु जातमभयं प्रतिमा सषट्कं यच्चाज निष्टविभयः सुरभी समूहः इत्यादि शामनमनुनतिकारणेषु ग्रंथोऽयमेव भवतिस्म परं निमित्तम् ॥ १२७ ॥
बिलकुल साफ बात है कि उक्त कथन व परवाने से भी यह तीर्थ श्वेताम्बर समाज का ही साबित होता है, और