Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 112
________________ ( ७७ ) करते हैं तो इस पहनावे में रोक करना उस समय हठधर्मी सा मालूम होता था । जब पहनावा जारी रहा तो कुछ दिगम्बर भाइयोंने आक्रमण कर मुकुट कुण्डल को छीन कर तोडने की ठान ली। एसी अनुचित कारवाई को देख उस समय मन्दिर की व सरकारी पुलिस जो पहरपर थीं उन को मना किये और तोफान न हो, इस खयाल से हटा दिये । उस समय मन्दिर में आसपास के गांवों से आये हुवे कुछ दिगम्बर श्रावक मौजूद थे वह बाहर जाने लगे तो उन्हे भाई चन्दनमल ( जिसे चांदमल भी कहते थे ) - गृहपति दिगम्बर बोर्डीन्ग उदयपुर ने रोका और हाथीयों के पासवाला जो द्वार है वहांपर एक किंवाड बन्ध कर दूसरे किंवाड की तर्फ हाथ फैला खडा हो गया और हठो मत मरजाओ की आवाजें करने लगा । इधर तो यह मामला था और बाहर आते ही किसीने ढोल की आवाज जारी करा दी । अक्सर छोटे गांवों में यह प्रथा है कि आपत्ति के समय वारी ढोल बजाया जाता है और उस आवाज याने बजाना इस तरह का होता है कि जो उस की आवाज सुनता है समझ जाता है कि कोई आपत्ति है । तुरन्त घटना स्थान पर पहुंच जाता है । इस तरह ढोल की आवाज से बहुत से मनुष्य जमा हो गये और अन्दर जाने लगे उस समय यह सारी भीड हाथीयों के पासवाले मन्दिर के द्वारपर भीतर के a बाहिर के हिस्से पर भी और जब ज्यादे मनुष्य अन्दर की सीढियों पर जमा हो गये और तिलभर भी हटना मुश

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