Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 137
________________ (१०२) कराई, और सम्बत् १४४४ में श्री जिनराजसूरिजी महाराजने श्री आदिनाथ बिंब की प्रतिष्ठा कराई, और सम्वत् १४८६ में प्राचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजीने तो बहुत जगह प्रतिष्ठा कराई। इसी तरह महाराणा मोकलजी जिन के मुख्य मंत्री सयणपालर्जाने बहुत धन खर्च कर के जैनमन्दिर बनवाये और इन के बाद महाराणा कुम्भाजी के जमाने में तो बहुत से मन्दिर बनवाये गये । और सुना जाता है कि उस समय नागदे में साडेतीन सौ झालर बजती थी। नागदे में इस समय मन्दिरों के खंडियेर तो बहुत दीखते हैं, जिन में बावन जिनालयवाले भी जीर्ण हालत में इस समय मोजूद हैं। यहां पर एक मन्दिर जिस का नाम " अदबदजी का मन्दिर " है अब तक आबाद हालत में मौजूद है, जिस में श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा सात फूट उंची भव्य प्राकृतिवाली स्थापित है । जिस की महाराणा कुम्भाजी के जमाने में सम्वत् १४९४ में महा शुदि ११ गुरुवार को औसवंशीय लक्ष्मीधर सेठ व इन के पुत्रोंने प्रतिष्ठा कराई सो अब तक ठीक हालत में है । इस के बाद महाराणाधिराज प्रतापसिंहजी व भामाशाह का सम्बन्ध देखते हैं तो यह वृत्तान्त जगजाहिर है, और इन धीर वीर प्रतापी नरकेसरी के जमाने में तो जैन धर्मगुरु बहुत मान पाये हुवे थे और जैन समाज का सितारा महाराणा के राज्य में व अन्यत्र सम्पूर्ण प्रकाश दे रहा था, जिस को ठीक तरह समझने के लिये हम आप को एक वीर शीरोमणि क्षत्रिय कुलकिरीट हिन्दूपत बादशाह महाराणाधिराज श्रीप्रतापसिंहजी की कथा

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