Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 76
________________ ( ४५ ) pillars upon which are supposed impressions of the feet of the god, All the rulers in Rajputana send gifts to Rishabnath saffron, Jewels, money and in return receive the high priest's blessing. ( Abridged from the Times ) पूजन के बाबत इन्डीयन एन्टीकवरी पुस्तक प्रथम सन् १८७२ पृष्ठ ९६ अंग्रेजी में लिखा है जिस का अनुवाद इस मुवाफिक है। विख्यात रीखबनाथ. भव्य दरवाजा के जिस पर एक बडा और पूराना नौबतखाना है । यह मन्दिर भी कितनेक मन्दिर एक एक हारबन्ध की तरह बना है। प्रत्येक मन्दिर में जैन देव की मूर्ति है। जो कि महान मुख्य मूर्चि तो जो भव्य है, मध्य मन्दिर में बिराजमान है । अन्दर की मूर्ति के दर्शन चांदी की प्लेटों से सुशोभित दरवाजे के कारण दूसरे भाग में से नही हो सकते । प्रयेक पूर्णिमा के दिन भण्डार भराता है । मूर्ति को श्रृंगारने के लिये लगभग एक लाख पचास हजार रुपयों के आभूषण मुख्य कारभारी लाता है। पूजा में सोने व चांदी के बरतन काम में लिये जाते हैं। तमाम दिन मूर्ति के सन्मुख हरएक भक्त दण्डवत प्रणाम करता है और कितनेक भक्त स्थम्भ उपर के दैव की मूर्तियों के चरण पर केसर चढाते हैं। राज

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