Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 110
________________ ( ७५ ) मुंछ मरोडे चढे अभिमाने, झहर भरा है निजरों में । ऋषभदेव है साहब सच्चा, देख तमासा फजरं में ॥ ७॥ मयाराम सुत भणे मूलचन्द, बडे सितंबर तुम देवा ॥ फोज बिखर गई घर घर घोडा, लज्जा राखो तुम देवा ॥८॥ श्रीयुत् मूलचन्दजीने उपर की लावनी में श्रीअधिष्ठायक देव की महिमा-चमत्कार बताया है और यह आपत्ति कम नही थी। इसी तरह अकबर बादशाह की सेनाने भी एक समय आक्रमण किया था और उस वख्त मन्दिर के अन्दर से भंबरदल गुञ्जारव करता हुवा निकला और सारी फोज को परेशान करदी-तबाही मच गई और आखिर भागना पड़ा। इस का बयान भी एक लावनी में प्रतिपादित है, लेकिन इस हकीकत के लिये इतिहास में कोई सिबूत हमारे देखने में नहीं आई । इस के अतिरिक्त भील-पाल बदल गई उस समय उदयपुर से श्यामलदासजी को समझाने के लिये भेजे गये थे, लेकिन भील लोग नहीं समझे और आपस में लडाई छिड गई होते होते भील लोग श्रीकेसरियाजी के मन्दिर के आसपास जमा हो गये और मन्दिर को घेर लिया। जब यह समाचार सेनानायक को मालूम हुवे तो तुरन्त ही मन्दिर की ओर रवाना हो गये और मन्दिर की रक्षा की जिस का कुछ बयान " मेवाडराज्य का इतिहास " में पृष्ठ ८४२ पर इस तरह लिखा गया है

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