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(6) तथैव स्वरों के नियमन के कारण 'आम - ओकस् - इरा - इला' आदि भिन्नस्वरीय एवं अनेकवर्णीय शब्दों के प्रयोग का भी द्वार बंध हो गया । तथापि 'अम-तत' आदि अलभ्य शब्दों के प्रयोग का सपरिश्रम प्रयास भी किया है ।
इतनी विकटता के बावजूद जब हताशा एवं निष्फलता की प्रतीति नहीं हुई तब यह मंतव्य दृढतम हुआ कि परमात्मा एवं परमगुरु की निकटता अवश्य फलदायिनी एवं शीघ्र विघ्नविनाशिनी है
मञ्जुला
श्लोकों के स्पष्टीकरणादि के लिए साथ में 'मञ्जुला' नामक वृत्ति भी प्रस्तुत है । सुगमता से अर्थावबोध हो इस लिए वृत्ति को यथाशक्य सरल की है । प्राय: प्रत्येक समासों का विग्रह करने का प्रयास किया है । श्लेषादि से कृत अर्थान्तर को समझने के लिए वृत्ति में ' अथवा ' को Dark दिखाया है । तत् तत् शब्दों के अर्थ करने में अप्रामाण्य की भ्रान्ति न हो जाए इस लिए वृत्ति में प्राय: प्रत्येक शब्दों का सन्दर्भग्रन्थ (साक्षिपाठ) भी दिया है ।
प्रत्येक श्लोकों की वृत्ति के अंत में समाप्तिस्थल का निर्देश विशेष स्मृति के लिए किया है ।
रुचिरा
प्रत्येक श्लोकों का 'रुचिरा' नामक अनुवाद - सामान्य भावार्थ भी साथ में प्रस्तुत है । वृत्ति में श्लेषादि से किए गए पृथगर्थ का अनुवाद में पृथगुल्लेख नहीं किया है ।
वस्तुत: ग्रंथरचना के समय में अनुवाद गुर्जरभाषा में ही किया था किन्तु शिखरजी, सिंहपुरी, वाराणसी, चित्रकूट, मउरानीपुर आदि के अनेक विद्वानों की स्नेहभरी सूचना थी कि 'ग्रंथ की व्यापकता को ध्यान में रखकर प्रस्तावना अनुवाद आदि हिन्दी भाषा में रखना आवश्यक है' अत: प्रस्तावना का तथा अनुवाद का पुनः हिन्दी भाषा में आलेखन किया ।
गुजराती प्रभुभक्तों की प्रभुप्रीति को ध्यान में रखकर गुज्जु अनुवाद को भी गौण नहीं किया ।
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