________________
Dark and Light
वि.सं. २०६५ के शिखरजी चातुर्मास में पर्युषण पर्व अनन्तर पारणा के दिन मध्याह्न पश्चात् विशेष जिज्ञासा सह पू. गुरुदेवश्री के पास गया। गुरुदेव को कुछ विशेष प्रश्न पूछे । गुरुदेव ने युक्तियुक्त समाधान प्रदान करके मेरी समस्याओं का निराकरण किया । पूर्ण संतोष के साथ जब मैं खडा हो रहा था तब गुरुदेव ने मेरे हाथ में रही नोट प्रति अंगुलि करके कहा “ इस नोट में क्यां लिखा है ? ” ।
“जिनराजस्तोत्रम् एवं जिनेन्द्रस्तोत्रम् का रफ आलेखन इस नोट में किया था ” कहकर गुरुदेव को नोट दी ।
कुछ
नोट के प्रथम पेज पर वर्णमाला लिखी हुई थी । लेकिन वर्णमाला के व्यंजनों Dark थे तथा कुछ व्यंजनों Light थे । सहज गुरुदेव ने पूछा “ऐसा क्यों ?" ।
"गुरुदेव ! जिनराजस्तोत्रम् की रचना से पूर्व किस वर्णों से स्तोत्र का निर्माण करना वह निश्चित नहीं था । तब वर्णमाला के सभी व्यंजनों का आलेखन किया था । तत्पश्चात् जिस वर्णों से स्तुति रचना होती गई उस वर्णों की पुनरुक्ति न हो अतः पुनः लिखकर उस वर्णों को Dark किया । तथैव जिनेन्द्रस्तोत्रम् की रचना के बाद भी वही वर्णों और Dark हो गए । तथा ङ, छ, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण से स्तुति रचना नहीं हुई इस लिए वह Light रह गये ।
गुरुदेव ने परम स्नेह से कहा “सुन्दर ! यह मत समझना कि इस वर्णों तु Dark करता है किन्तु यह क ख ग आदि वर्णों से परमात्मा की स्तुति का निर्माण हुआ है - यह वर्णों परमात्मा के चरणों में समर्पित हुए है अतः यह वर्णों Dark है - यह वर्णों में तेज है । तथा जिस वर्णों से परमात्मा की स्तुति का निर्माण नहीं हुआ उस वर्णों में तेज नहीं है।
गुरुदेव की अभिनव कल्पना से मैं आफरीन हो गया ।
कुछ रुक कर पुनः गुरुदेव ने कहा “अब ऐसा भी क्यों न हो कि जिस