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कमनीया
हे स्वच्छ कुंभार ! तुं रोष रूप गिरि के भेदनेवाले, अनन्तज्ञानी, सरिता सम निर्मल, काम रूप वृक्ष को छेदनेवाले, पृथ्वी में सूर्य एवं चन्द्र तुल्य, पूर्ण दान करनेवाले, संसार रूप सरिता में सर्व जीवों को तारने के लिए नौका समान, ज्ञानीओं के गुरु, सूर्य की शोभा सम देदीप्यमान मुखवाले, अवनि को अलंकृत करनेवाले श्री अरिहंत परमात्मा की स्तवना कर ॥ ४ ॥
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अर्हत्स्तोत्रम्