Book Title: Jinendra Stotram
Author(s): Rajsundarvijay
Publisher: Shrutgyan Sanskar Pith
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अन्वयः
कुं न: ! [हे नर !] कुकुः कुकुस्त्वम् [कोपकृशानुः निन्दाकृत् त्वम् ] कुकुकुकुकुकुम् [पृथ्वीपापीयोऽल्पपापपापनिवारकम् ] कुम् [नम्रम् ] कुकुकुम् [उपसर्गपीडानिवारकम् ] कुकुम् [ महीहारम् ] कुकुम् [ पापरहितम् ] कुकुम् [ प्रायेण मौनिनम् ] कुकुम् [कैतवनिवारकम् ] कुम् [अनुकूलम्] त्वमर्हन्तम् [त्वं श्रीसार्वपरमेश्वरम् ] भजस्व [ सेवस्व] ।
७८
अर्हत्स्तोत्रम्

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