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कमनीया हे भ्रान्त एवं बल हीन बालक ! तुं पृथ्वी में चंद्र सम सौम्य, मानवों के भय का क्षय करनेवाले, दंभ एवं हास्य रहित, धर्म के दाता, विषय रूप भयंकर पिशाच से विजयी, इक्षु रस सम मधुरभाषी, रमा के राग से रहित, अविस्मयी, निर्भय, अशठ श्री अरिहंत परमात्मा की अर्चना कर ॥ ९ ॥
अर्हत्स्तोत्रम्