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कमनीया
चंचल एवं अभिमान के पर्वत सम हे सम्राट् ! तु अभिमान रहित, ज्ञान के भंडार, चतुर पुरुष रूप भ्रमरों को आनन्दित करने में पद्म तुल्य, सुख के प्रदाता, अज्ञानी रूप श्वान को दूर करने के लिए हस्ति तुल्य, साधुसमुह के स्वामी, हंस सम उज्ज्वल आत्मावाले ( निर्मलात्मा ), अग्नि सम कान्तिमान, जरा एवं भय रहित, श्री अरिहंत परमात्मा को वंदन कर एवं स्तवन कर ॥ ६ ॥
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अर्हत्स्तोत्रम्