Book Title: Jinendra Stotram
Author(s): Rajsundarvijay
Publisher: Shrutgyan Sanskar Pith
View full book text
________________
अन्वयः
(हे) ण ! [हे तस्कर ! ] णण: त्वम् [मोक्षरतिस्त्वम् ] णा-ऽणम् [निर्गुणनिर्वेदनम्] णणम् [दुष्टजयम् ] गुणा-ऽणीणणम् [भूभूषणाऽक्षीणज्ञानदर्शनम्] णणाणणणम् [निर्वाणज्ञानाऽनिर्वाणज्ञानकृपम् ] णणा-ऽणूम् [कमलदललपन - जटारहितम् ] गुणा-ऽणौणम् [करेणुगमन-मायारतिरहितम् ] अर्हन्तम् [ श्रीतीर्थकरपरमात्मानम् ] सदा [ सर्वदा] भज [ सेवस्व ] |
७२
अर्हत्स्तोत्रम्

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318