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कमनीया अभिमान रहित, स्वर्ग के देवों रूप भ्रमरों के लिए पद्म तुल्य, शोक-भय एवं मैथुन की इच्छा से रहित, एकान्त विचार रूप चोर को पकडने के लिए गुप्तचर समान, त्रिभुवन गुरु, सूर्य सम प्रतापी, निदूर्षण, मेघ सम गंभीर ध्वनिवाले, मोक्ष के प्रदाता श्री अरिहंत परमात्मा को जय की प्राप्ति हो ॥ ५ ॥
अर्हत्स्तोत्रम्