Book Title: Jinendra Stotram
Author(s): Rajsundarvijay
Publisher: Shrutgyan Sanskar Pith
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अन्वयः गोगोगो-गोगो-ऽगोगोगो-गोगोगो-गोगोगो-गो-गो: [गुरुनक्षत्रनिशाकर
महीमात्रसत्यवस्त्रवति-दर्पाद्रिदम्भोलि-पृथ्वीपुष्करप्रभाकर-पृथ्वीपतिश्रेष्ठराजपुत्र:] गोगोगो-गो-डगोगोगो-गो: [रमारामाऽरागि-चारिदुःखवद्विवारि-सुखसागरः] अर्हन् [श्रीजिनेन्द्रपरमात्मा] मह्यं सौख्यं दद्यात् [मह्यं शर्म प्रददातु] ।
अर्हत्स्तोत्रम्

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