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मनोकामना
'दीक्षातिथि समीप में आ रही है । प्रतिवर्ष की तरह इस दीक्षातिथि के उपलक्ष में भी कुछ न कुछ प्रगतिसाधक संकल्प अवश्य करना है । क्या करूं...? फिलहाल छह दिन शेष है फिर भी निर्णय तो शीघ्र करना होगा।'
माघ धवला द्वादशी, वि.सं.-२०६५
७-८-'०९ शनिवार
चांदनी चौक - दील्ली. शैशव से जन्मदिन पर कोई विशेष संकल्प होता था । दीक्षा के पश्चात् यह पद्धति का अनुकरण प्रत्येक दीक्षातिथि पर भी होता रहा । कलिकुंड चातुर्मास के बाद वि.सं. २०६५ की विहारयात्रा श्री सत्यपुर तीर्थ से श्री शिखरजी महातीर्थ के छ’री पालक संघ अंतर्गत थी । दीक्षातिथि करीब थी तब यह विचारणा हुई एवं डायरी में लिखी ।
चतुर्दशी के दिन विहार में यही विषय पर विचारणा हो रही थी तब एक विचार आया कि शिखरजी प्रति हमारा विहार है। दीक्षा के बाद प्रथमबार शिखरजी महातीर्थ की संस्पर्शना होगी । बीस-बीस तीर्थंकर परमात्मा की पावन भूमि में खाली हाथ जाना उचित नहीं है । लेकिन क्या करूं...?।।
बहुत चिंतन करने के बाद यह विचार आया कि एक ही उपाय है - स्तुतिरचना ! स्तुतिसुमन हि प्रभुजी के चरणों में अर्पित करूं ।
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