Book Title: Dharm ke Dash Lakshan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 40
________________ - समभाव ३९ मोटर रोक देने वाले गामा पहलवान के बाजुओंों में मरते समय मक्खी उड़ाने की भी शक्ति न रही थी । क्या कोई दावे के साथ कह सकता है कि जो शक्ति, जो सौंदर्य और जो सम्पत्ति आज उसके पास है वह कल भी रहेगी ? काया और माया को बिखरते क्या देर लगती है ? ऐसी स्थिति में मान क्या किया जाय और किस पर किया जाय ? इसीप्रकार जाति, कुलादि पर भी घटित कर लेना चाहिये । ऐश्वर्यमद बाह्य पदार्थों से सम्बन्ध रखता है तथा ज्ञानमद आत्मा की अल्पविकसित अवस्था के श्राश्रय से होने वाला मद है । जिसे अपनी पूर्णविकसित पर्याय केवलज्ञान का पता है, उसे क्षयोपशमरूप अल्पज्ञान का अभिमान कैसे हो सकता है ? कहाँ भगवान का अनन्तज्ञान और कहाँ अपना उसका अनन्तवाँ भाग ज्ञान, क्या करना उसका अभिमान ? और क्षयोपशम ज्ञान क्षरणभंगुर भी तो है | अच्छा भला पढ़ा-लिखा आदमी क्षण भर में पागल भी तो हो सकता है ? धन-जन-तन आदि संयोगों के आधार पर किया गया मान अन्ततः खण्डित होना ही है; क्योंकि संयोग का वियोग निश्चित है, प्रतः संयोग का मान करने वाले का मान खण्डित होना भी निश्चित है । मार्दवधर्म की प्राप्ति के लिए देहादि में से एकत्वबुद्धि तोड़नी होगी । देहादि में एकत्वबुद्धि मिथ्यात्व के कारण होती है, अतः सर्वप्रथम मिथ्यात्व का ही प्रभाव करना होगा, तभी उत्तमक्षमामार्दवादि धर्म प्रकट होंगे, अन्य कोई मार्ग नहीं है । मिथ्यात्व का अभाव आत्मदर्शन से होता है; अतः प्रात्मदर्शन ही एक मात्र कर्त्तव्य है; उत्तमक्षमामार्दवादि धर्म अर्थात् सुख-शान्ति प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है। देहादि में परबुद्धि के साथ-साथ ग्रात्मा में उत्पन्न होने वाली क्रोधमानादि कषायों में हेयबुद्धि भी होनी चाहिये। उनमें हेयबुद्धि हुए बिना उनका प्रभाव होना सम्भव नहीं है । यद्यपि अज्ञानी भी कहता तो यही है - मान खोटी चीज़ है इसे छोड़ना चाहिए तथापि उसके अन्तर में मानादि के प्रति उपादेयबुद्धि बनी रहती है। हेय तो शास्त्रों में लिखा है इसलिये कहता है । मन से तो वह मान-सम्मान चाहता ही है, अतः मान रखने के अनेक रास्ते निकालता है । कहता

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