Book Title: Dharm ke Dash Lakshan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 168
________________ क्षमावाणी दशलक्षण महापर्व के तत्काल बाद मनाया जानेवाला क्षमावागगी पर्व एक ऐसा महापर्व है, जिसमें हम वैर-भाव को छोड़कर एक-दूसरे मे क्षमायाचना करते हैं; एक-दूसरे के प्रति क्षमाभाव धारण करते हैं। इसे क्षमापना भी कहा जाता है। __ मनोमालिन्य धो डालने में समर्थ यह महापर्व आज मात्र शिष्टाचार बनकर रह गया है । यह बात नहीं कि हम मे उत्माह में न मनाने हों, इमसे उदास हो गये हों। आज न हम इमगे उदाम हुए. हैं; नथा मात्र उत्साह से ही नहीं, इसे अति उत्साह से मनाते हैं। इस अवमर पर सारे भारतवर्ष में लाखों रुपयों के बहुमूल्य काई छपाये जाते हैं, उन्हें चित्रित सुन्दर लिफाफों में रखकर हम दृष्टमित्रों को भेजते हैं। लोगों से गले लगकर मिलते हैं, क्षमायाचना भी करते हैं; पर यह मव यंत्रवत् चलता है। हमारे चेहरे पर मुस्कान भी होनी है, पर वनावटी । हमारी अमलियत न मालम कहाँ गायब हो गई है ? विमान-परिचारिकाओं की भांति हम भी नकली मम्कगने में ट्रेन्ड हो गये हैं। हम माफी मांगते है; पर उनमे नहीं जिनमे मांगना चाहिये, जिनके प्रति हमने अपगध किए हैं; अनजाने मे ही नहीं, जानवझकर : हमें पता भी है उनका, पर........ । हम क्षमावाणी कार्ड भी भेजने है, पर उन्हें नहीं जिन्हें भेजना चाहिए; चुन-चुनकर उन्हें भेजते हैं, जिनके प्रति न तो हमने कोई अपगध किरा है और न जिन्होंने हमारे प्रति ही कोई अपगध किया है। आज क्षमा भी उन्हीं से मांगी जानी है जिनसे हमारे मित्रता के संबंध हैं, जिनके प्रति अपगध-बोध भी हमें कभी नहीं हया है। बतायें जग, वास्तविक शत्रुओं मे कौन क्षमा मांगता है ? उन्हे कौन-कौन क्षमावागी कार्ड डालते हैं। क्षमा करने-कगने के वास्तविक अधिकारी तो वे ही हैं। पर उन्हें कौन पूछता है ? बड़े कहलाने वाले बहुधंधी लोगों की स्थिति तो और भी विचित्र हो गई है । उनके यहां एक लिस्ट तैयार रहती है - जिसके अनुसार

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