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१८६ 0 धर्म के बरालक्षण * इतिहासरत्न, विद्यावारिधि डॉ. कस्तूरचन्दजी कासलीवाल, जयपुर (राज.)
___."दशधमों पर डॉ० भारिल्ल सा० के लेखों को पुस्तकरूप में प्रकाशित करके बहुत अच्छा काम किया है। विद्वान् मनीषी ने अपनी सुबोध शैली में दणधर्मों पर मारगर्भित एवं मौलिक विचार प्रस्तुत किये हैं, जिनको पढ़कर प्रत्येक पाठक इन धर्मों के वास्तविक रहस्य को सरलता से जान सकता है तथा उन पर चिन्नन एवं मनन कर सकता है । पुस्तक की छपाई एवं गेट-अप दोनों ही नयनाभिराम हैं।
-कस्तूरचन्द कासलीवाल * डॉ. ज्योतिप्रसादजी जैन, लखनऊ (उ० प्र०)
___ डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल प्राध्यात्मिक शैली के प्रतिष्ठित सुचिन्तक, मुवना, मुलेखक हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने प्रसादगुण-सम्पन्न शैली में धर्म के उत्तमक्षमादि दश पारम्परिक लक्षणों अथवा प्रात्मिक गुणों का युक्तियुक्त विवेचन किया है, जो मैद्धान्तिक मे अधिक मनोवैज्ञानिक है, और माधन को विभिन्न भूमिकाओं के परिपेक्ष्य में अन्तर एवं बाह्य, निश्चय एवं व्यवहार, विविध दृष्टियों के समावेश के कारण विचारोत्तेजक है; अतः पठनीय एवं मननीय है।
-ज्योतिप्रमाद जैन * डॉ० राजेन्द्रकुमारजी बंसल, कार्मिक अधिकारी, प्रो. पो. मिल्स, शहडोल (म०प्र०)
....... लेग्यक ने प्रात्मकन्याण-परक पाठको एवं मत्यान्वेषी जिज्ञासुओं के लिए सारगर्भित, उपयोगी एवं तलस्पर्शी सामग्री प्रस्तुत की है, जिसे पढ़कर पाठक के मन में अज्ञानतायुक्त परम्परागत धार्मिक क्रियानी की निःसारता स्वत: सहजरूप से प्रकट हो जाती है । लेखक चिन्तनशील पाठक के हृदय को उद्वेलित करने में सफल रहा है।
__- राजेन्द्र कुमार बंसल • डॉ० राजकुमारजी जैन, प्रोफेसर, प्रागरा कॉलेज, प्रागरा (उ० प्र०)
डॉ० भारिल्ल ने हम अथ में धर्म के दशलक्षरणों की बड़ी ही वैज्ञानिक एव हृदयग्राही विवेचना की है। दशलक्षण धर्म पर अध्यात्मचिन्तन-प्रधान एवं मनोरम विवेचना प्रथम बार ही देखने को मिली। ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ पर डॉ० भारिल्ल के गहन अात्मचिन्तन एव उनकी सरस, सुबोध तथा प्रात्मस्पर्शी शैली के दर्शन होते है । निश्चय ही इम ग्रथ के प्रचार-प्रसार से प्रात्मरमिकजनों को धर्म के मर्म का सम्यक बोध होगा और उनमे यथार्थ धर्म-चेतना जागत होगी। दशक्षलग धर्म पर बड़ी महत्त्वपूर्ण रचना प्रापने मुमुक्षु जगत् को प्रदान की है ।
एतदर्थ प्रत्येक प्रध्यात्मप्रेमी प्रापका चिरऋणी रहेगा। - राजकुमार जैन * मं० नेमीचन्दजी जैन, इन्दौर (म०प्र०), संपादक 'तोयंकर' (मासिक)
अल्बर्ट पाइन्स्टीन ने अपने एक लेख "रिलीजन एण्ड साइन्स · इरिकासिलेबिल' में लिखा है कि "समाधान को अधिक पेचीदा बनाने वाला तथ्य