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अभिमत 0 १३ प्रशंसनीय है और इसके लिए वे अभिनन्दन के पात्र हैं। उनके सब लेख सर्वत्र
सर्वदा-सर्वया सब को धर्म-प्राराधना में प्रत्यन्त सहायक होंगे। -खोमचन्द * सिद्धान्तरल पं० नन्हेलालजी, न्यायसिद्धान्तशास्त्री, राजाखेड़ा (राज.)
डॉ. भारिल्ल ने बड़ी गहराई के साथ दशलक्षणों का अपूर्व विवेचन किया है । अभी तक इस विषय में ऐसा सांगोपांग विवेचन अन्यत्र कहीं देखने में नहीं पाया है । डॉ० भारिल्ल ने अपने प्रतिभागत तर्क-वितर्क और प्रश्नोत्तर की शैली से पुस्तक को अत्यधिक उपयोगी बना दिया है। डॉ० भारिल्ल के विशुद्ध क्षयोपशम की जितनी तारीफ की जाये कम है। मेरी शुभकामना है
कि भारिल्लजी का भविष्य इसमे भी अधिक उज्जवल और उन्नतिशील बने । * डॉ० दरबारीलालजी कोठिया, न्यायाचार्य, वाराणसी (उ०प्र०)
......"इसमें प्रापने अपनी सहज, अनुभवपूर्ण और समीक्षात्मक शैली से उक्त दशधर्मों का विवेचन प्रस्तुत किया है। इसमें संदेह नही कि पापका प्रयत्न बहुत सफल हुआ है। कहीं-कहीं चुटकी भी ली है....."पर वह चुटकी गलत नही है ।......"ब्रह्मचर्य का जो चित्रण किया है वह जी को लगता है
और वह उचित प्रतीत होता है।...""मुझे आशा है प्रापको सन्तुलित लेखनी द्वारा चारों अनुयोगों की उपयोगिता पोर महत्त्व पर भी एक ऐसी ही पुस्तक प्रस्तुत होगी। हार्दिक बधाई ! पुस्तक का प्रकाशन और साज-सज्जा भी उत्तम है।
- दरबारीलाल कोठिया * पं० बंशीधरजी शास्त्री, एम० ए०, जयपुर (राज.)
पहले पं० सदामुखजी के दशधर्मो पर विवेचन पुस्तकाकार प्रकाशित हुए है। दो-एक अन्य लेखकों के भी पढ़े है, किन्तु इस पुस्तक में धर्मों पर ममीचीन एवं सर्वांगीण विवेचन सहज एवं मरल शैली में किया गया है। इममे धर्मो की निश्चय-व्यवहार के प्राधार में सुन्दर बोधगम्य परिभाषा निर्धारित की गई है । दशधर्मों एवं क्षमावाणी के मम्बन्ध में कई भ्रान्तियों का निरसन युनिपूर्ण ढंग से किया गया है। इसप्रकार यह पुस्तक विद्वान् एवं साधारण वर्ग के लिये उपयोगी बन गई है। इसका पठन-पाठन विद्यालय के छात्रों में भी करवाना चाहिये । पर्युषण पर्व के अतिरिक्त भी इसका नियमित अध्ययन प्रत्येक तत्त्वजिज्ञासु को करना चाहिए। ऐमे मुन्दर एवं तथ्यपूर्ण विवेचन के प्रकाशन के लिए सभी सम्बन्धित व्यक्ति धन्यवाद के पात्र है। * डॉ० पन्नालालजी जैन, साहित्याचार्य, सागर, मंत्री, श्री भा०वि० जैन विद्वत्परिषद्
माकर्षक प्रावरण, हृदयहारी साजसज्जा, सरल, सुबोध भाषा और हृदय पर सबः प्रभाव करने वाली वर्णन शैली से पुस्तक का महत्त्व बढ़ गया है । इस सर्वोपयोगी प्रकाशन और लेखन के लिए धन्यवाद । -पमालालन