Book Title: Dharm ke Dash Lakshan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 192
________________ अभिमत 0 १९१ • सन्मति संदेश (मासिक), दिल्ली, जनवरी १९७६ दशलक्षण धर्मों के चिन्तनीय स्वरूप को प्रात्मधर्म मे आद्योपान्त पढ़कर मेरी मी यही भावना थी कि यदि ये पुस्तकाकार प्रकाशित हो जावें तो जिज्ञासु जीवों को धर्म का मर्म समझने में अत्यधिक प्रेरणा मिलेगी।""इसमें दशधों पर सरल-सुबोध भाषा में प्रकाश डाला है, धर्म के अन्तःस्वरूप का आगम और तर्क के परिपेक्ष्य में ह्रदयस्पर्शी, मार्मिक विवेचन प्रस्तुत किया है । डॉ० मारित धर्म के स्वरूप को बड़ी सूक्ष्मदृष्टि और तर्क की कसौटी पर कसकर मननीय बना देते हैं, साथ में रोचकता भी बनी रहती है। -प्रकाराचंद 'हितषी' * डॉ. देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री, व्याल्याता, शासकीय महविद्यालय, नीमच (म०प्र०) निबन्धों के रूप में तात्विक विश्लेषण प्रस्तुत करने वाली यह रचना जिस धरातल पर लिखी गई है वह सचमुच अनूठी है। इसमे ज्ञान का पुट नो है ही, पर विवेचन की सहज स्फीत शैली में दृष्टान्तों का प्रयोग भी पर्याप्त रूप से लक्षित होता है। कहीं-कहीं व्यंग्य भी मुखर हो उठा है। धर्म के दश लक्षणों का विवेचन करने में विभिन्न दृष्टियों का भी उचित ममावेश हुअा है। मनोविज्ञान और विभिन्न मामाजिक प्रवृत्तियों के मदर्भ में इसका मूल्याकन मभी प्रकार में महत्त्वपूर्ण है। इम पुस्तक की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि प्रत्येक बात इतनी स्पष्टता के साथ युक्तिपूर्ण ढंग से कही गई है कि आदि से अन्त तक रोचकता परिलक्षित होती है । वास्तव में निबध की शैली में ये भाषण ही हैं । लेखक के सामने थोता है, वह स्वयं वना है। इसलिये उनको समझाने की दृष्टि मे जितनी बातें कही जा सकती हैं उनको क्रमबद्ध रूप में कहा है। इससे लेखक का व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से इनमें झाँकता हुआ दिग्वलाई पड़ता है । अपनी बात को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए चलती हुई भापा के शब्द-प्रयोगों का भरपूर उपयोग किया गया है। चलती हुई भाषा में ही लेखक की 'टोन' का पैनापन मालूम पडता है और इसी के कारगा पुस्तक मे सर्वत्र नयापन आ गया है । क्योंकि तर्क और युक्तियां किमी सीमा तक ही अपने विषय को स्थापना करने में मक्षम होती है । लेग्वक ने उनको छोड़ा नही है, घुमा-फिराकर उनमे बराबर काम लिया है, लेकिन उनके आगे अपनी शैली की छाप लगाने में भी नहीं चूका है। वही लेखक की मबसे बड़ी सफलता है जो उमकी प्रतिभा की मूझ-बूझ को प्रकट करने वाली है। लेखक का विषय-विवेचन ऐमा है कि माधारण व्यक्ति भी बिना किसी कठिनाई के मरलना से समझ सकता है। उदाहरण के लिए प्रस्तुन अंश

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